शुक्रवार, 30 नवंबर 2007

अक्स

हर किसीके सुखमें
मेरे सुखकी छबि है
हर किसीके दुखमें
मेरे दुखका साया है
हर किसीके गुस्सेमें
मेरा दर्द उजागर है
हर दिलके साथ बँधे
मेरे दिलके तार हैं
क्युँ न सारी दुनियाको
अपना अक्स समझूँ मैं
मेरे हरतरफ होनेके
निशाँ नजर आते हैं
तेरी ख्वाहिशके आगे
झुकाया है सिर मैने
अब आगेका सफर
तय करना तू जाने
हर पल नया जहाँ
आबाद करनेवाले
तुझे दायरेमें बाँध लूँ
यह कोशिश नाकाम है