शनिवार, 11 अक्तूबर 2014

शुभ दीपावली



बचपनमें हम दिवालीके त्योहारमें गोटा ( मोती ) साबुन लाते थे।  उबटन लाते थे।  चमेलीका तेल लाते थे।  गरम पानीसे स्नान करते थे।  फुलझडीयाँ  लगाते थे।  हम बहुत खुश रहते थे। हमें कभी यह अहसास नहीं होता था की हम गरीब हैं।  हमें करोड़ों रुपियोंकी आस नहीं रहती थी।  दरअसल रुपये पैसोंकी बात ही हमारे दिमाग में नहीं होती थी।  कोई कमी हमें नहीं खलती थी। हम बहुत छोटी छोटी बातोंमें ढेर सारे आनंद की प्राप्ति कर लेते थे।  कुम्हार के सामने खड़े होकर उसकी गतिविधियाँ घंटो तक देखते थे।  मिट्टीके खिलौने पाकर खुश होते थे।  

अब लोग करोड़ोंकी बातें करते हैं और नाखुश हो जाते हैं। क्या सचमुच पैसोंकी इतनी जरुरत होती है ? आज भी इंसान राशन के गेहूँ चावल खाके खुश रह सकता है।  खुशियोंसे भरी जिंदगी पैसोंकी मोहताज नहीं होती।   

भूमीवरी पडावे 
ता-यांकडे पहावे 
प्रभुनाम नित्य गावे 
या झोपडीत माझ्या 

  
शुभ दीपावली 

जरुरतमंदोंकी सहायता करो 

शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

नित्यता


बचपनमें झगड़े हाथापाई होती है जो भयका कारण बनती है और बडप्पनमें तकरार, चीखना, चिल्लाना, डाँटना, गाली गलौज होती है जो भयका कारण बनती है।  आहार निद्रा भय आदि जीवनके अभिन्न अंग है। 


लेकिन मेरा बालक एक दिन बोला,"पिताजी, मेरी उम्र करोडो सालकी है और मैं करोड़ साल तक रहूँगा" मैंने पूछा,"कैसे?" तो वह बोला,"मेरे शरीरके अणु रेणू इलेक्ट्रान प्रोटोन आदि कण करोड़ों साल पुराने है और वो कण कई करोड़ों साल तक रहेंगे"




पदार्थ नष्ट नहीं होता, वह दूसरी वस्तुओंमें और उर्जामें तबदील हो जाता है। अगर चाँद तारों सहित सूरज भी ख़तम हुवा तब भी ब्लैक होल रहेगा और ग्रेविटी के रूप में ऊर्जा रहेगी। ऊर्जा वस्तुमें तबदील हो जाती है और वस्तु ऊर्जामें तबदील हो जाती है जो अक्षय है। 



जब सब कुछ एकमात्र ऊर्जाही है तब किसीसे कौन क्या छिन लेगा, क्या डाँटेगा और कौन किसीसे क्यों डरेगा। इस ज्ञान के बाद क्रोध और भय दोनों छु मंतर हो जाते है।  आस्तित्व कभी मिटता नहीं। यह सर्वव्यापी नित्य सत्य अनादि अनंत है। 




सीप की चमकीली सतह पे जैसे चांदीका झूठा आभास होता है वैसेही नित्यता के ऊपर अनित्यता का झूठा आभास होता है। अनित्यता के परे छुपी नित्यता जो जान लेगा उसे अभय मिलेगा। क्योंकि वह जान लेगा कि मेरा कभीभी कोईभी कुछभी बिगाड़ नहीं सकता। मैं अमर हूँ, अनादि अनंत हूँ।  मैं सर्वव्यापी चिरकाल सत्य हूँ। परमात्मा नित्य है और झूठा अनित्य जगदाभास परमेश्वरी इच्छा {देवी}की वजहसे होता है।  



अपना यह सर्वव्यापी ईश्वरीय स्वरुप जो जान लेता है वह सिर्फ़ शान्त आनन्द बनके रहता है। उसका अहंकार मिट जाता है और वह ज्ञान और अज्ञान के परे केवलज्ञान मात्र रह जाता है। 



हे सर्वव्यापी सर्वेश्वर, हे अनादि अनंत जनार्दन, मैं हर तरफ सिर्फ तुझेही देखता हूँ और सब तरफ एक तुझेही नमन करता हूँ। 



विष्णुमय जग 
वैष्णवांचा धर्म 
भेदाभेद भ्रम 
अमंगळ 

ॐ 

सदसच्चाहम्