शनिवार, 21 अगस्त 2010

खुदाके करीब



खुदा
जब मैं बस्तियोंकी चहलकदमीसे दूर
बंजर टीलोंके बिच दुनियासे मुँह मोड़कर
तेरे खयालमें खोया रहता हूँ
तब मेरे ज़हनमें किसी इंसानका
किसी कामकाजका या सुखदुखका
कोई ख़याल नहीं होता
किसी बातकी चाहत होती है
किसी बातपर गुस्सा होता है
मेरा मन तराशे हुए हिरेके जैसा
साफ़ होता है
किसीभी तरहकी गंदगीका
अहसास तक नहीं होता
आसपास उजड़े हुए टीले होते है
सारे आसमानमें छाया हुआ
तू रहता है
और तेरी शानका असर
मुझपर उतरता रहता है
जन्नत मेरे करीब आती है
और मैं तेरे लफ्ज़ सुनने लगता हूँ
इस नायाब माहौलसे
निकलना नहीं चाहता मैं
लेकिन जिस्मके होशमें आना पड़ता है
और वापस इस दीनोदुनियाकी
नापाक जंगका हिस्सा बनाना पड़ता है


गुरुरित्याख्यया लोके साक्षा विद्याहि शांकरी
जयत्याज्ञा नमस्तस्यै दयार्द्रायै निरंतरम

रविवार, 15 अगस्त 2010

माँ


अल्फाज रुकते नहीं हैं
सचको ज़ाहिर करते हैं
प्यार नहीं पैसा नहीं
बस थोडासा अनाज है

बच्चे कहते मत रो माँ
हम खुश हैं तू देख रही ना
आज़ादी हम मना रहे हैं
तू क्यूँ नाराज दिखती हैं माँ

पता नहीं ये बच्चे इतने
खुश कैसे रहते हैं
शादीकी उम्र बीत गई
साथीकी तलाश करते हैं

जिंदगीके मायने बदल गए
ज़िंदा रहनाही जिंदगी हैं
बच्चे हँसते रहते हैं
माँ बेकारकी रोती हैं

मुश्किलोंके हौसले बुलंद हैं
पर जिंदगी यूँही चलती है 
हमारा जोश जवाँ है
अब तो एक बार हँस दे माँ 


सोमवार, 2 अगस्त 2010

तू मेरा है



तूही मेरा जीवन है भगवन
जाने क्यूँ अनजान बना है
रामा तूही मेरा सहारा
मुझे डूबता क्यूँ छोड़ा है

तेरी खुशीसे मैं खिलता हूँ
तू रूठे तो मुरझाता हूँ
पीठ फेर ली मुझसे तूने
तो मैं पागल हो जाता हूँ

मेरा घर संसार चलाता
तूही मेरा स्वामी है दाता
क्यूँ तू मुझसे दूर है रहता
तू तो है सबको अपनाता

अपना बना ले मुझे बचा ले
कितना मुझको तड़पाता है
मैं तेरा हूँ कुछ तो दया कर
तू मेरा है तू मेरा है