रविवार, 24 अक्तूबर 2010

Begum Akhtar - Aye mohabat tere anjam pe rona aaya

हार



अल्लाह तूभी दिवारोंमें कैद हो गया
भगवान सलाखोंके पीछे है
हर किसी बेड़ेने अपना ठप्पा लगाया है
हर किसी खेमेका अपना अलग निशाँ है
किसीको खज़ाने की चिंता है
किसीको दीवारोंकी फिक्र है
और यह दीवाना गलियोंमें घूमता है
सोचते हुए की कभी तू सबका हुवा करता था
मुझे सबको कहना पड़ता है
की तू मुझमें भी है
ख़ैर मैंने बोलनाही छोड़ दिया है
क्यूँकी दुनिया न तो तुझे जानती है
न मुझे पहचानती है
मालिक, यह तो तेरी दया है
की मेरी जुबाँ इस काबिल है
जो तेरा नाम लेती है
और तू मेरे दिलो दिमाग में बैठ के
मेरे साथ आवारा घूम रहा है
बुतपरस्ती भी छोड़ दी मैंने
और न काबेकी तस्बीरोंको देखता हूँ
इस कदर मायूस किया है
मुझे इन दुनियावालोने
ऐ खुदा, मैं खुदसे भी हार गया हूँ
मेरा वजूदही क्या है
लेकिन तुझपर भरोसा है
या परवरदिगार तुझसे
मैंने मुहोब्बत की है
जिंदगी हारती नहीं
बंदगी हारती नहीं
मैं हार भी जाऊँ लेकिन
मुहोब्बत हारती नहीं


सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

साथ




मेरी इच्छा कुछ नहीं रामा
तेरी मर्जी प्यारी मुझको

तूही देह है तूही चेतना
तेरे हाथों सौंपा खुदको

सुखदुख सबकुछ तू पायेगा
तेरा है अर्पण किया है तुझको

तूही हमेशा दिखे हर तरफ
ऐसी दृष्टि दे तू मुझको

और तमन्ना कुछ नहीं मेरी
रखे हमेशा साथ तू मुझको

सबकुछ त्यागके तेरी कृपासे
मिला मोक्षधन अब यह मुझको

रामनामका बजाऊँ डंका
रामबिना सुध हो न किसीको

मैं भी राम हूँ तू भी राम है
सभी राम है बताऊँ सबको

सकल चराचर तू है रामा
रामही मिलता रहे रामको


रविवार, 17 अक्तूबर 2010

दशहरा


भगवान,
इन्द्रियजन्य सुखोंकी कामना मैं नहीं करता
ऐसे सुख मुझे लालसामें बाँध लेते हैं
मैं उनके पीछे बेबस होकर खींचता जाता हूँ
मैं उनका गुलाम होकर उन्हें पानेके लिए
उलटे सीधे उद्योग करता रहता हूँ

वास्तविक सुख तो तेरे स्मरणमें है।
जो मन को शान्ति प्रदान करता है
बेवजह बड़े बड़े काम करते रहना सुखप्रद नहीं
अत्यधिक सुख पानेकी आकांक्षा रखना सुखप्रद नहीं।

मन की शान्ति सच्चा सुख है
जिससे इंसान इधर उधर भटकता नहीं
ऐसा स्थिर मन जब तेरे चरणोंमें आता है,
तब अहंकार आदिके सारे बोझ हट जाते हैं
मन फूल समान कोमल और हल्का हो जाता है

हे सर्वान्तर्यामी, सर्वव्यापक रामा,
यही मेरा दशहरा है
मैं दसों इन्द्रियोंकी गुलामीसे आजाद हो गया हूँ
मेरा अहंकार रूपी रावण मर गया है
कुण्डलिनी सीताशक्ती जो इस देहमें कैद थी,
वह सहस्त्रार कमलको लांघकर
विश्वव्यापक
रामपरमात्मासे मिल गयी है
मैं धन्य हो गया प्रभो
।। जय श्रीराम ।।



गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

चाकर





दीन हूँ मैं तू दीनदयाला

तू मालिक है मेरा हो रामा
चाकर
मैं तेरा

सेवा तेरी तू करवाता
बल नहीं है मेरा हो रामा
चाकर मैं तेरा

विश्वव्यापी मेरे परमात्मा
यह कायाभी तेरी हो रामा
चाकर मैं तेरा

मैं संकल्प नहीं कुछ करता
तेरी इच्छा प्यारी हो रामा
चाकर मैं तेरा

मैं नहीं रामा तू सब करता
तेरा खेल है सारा हो रामा
चाकर मैं तेरा

तेरी कृपासे बोझ गया सब
तू मेरा है सहारा हो रामा
चाकर मैं तेरा

तेरी धुनमें सब जग छूटा
तू सबकुछ है मेरा हो रामा
चाकर मैं तेरा

सब कर्मोंका फल तू खुद है
अहंकार चरणोमें हो रामा
चाकर मैं तेरा

रहूँ हमेशा साथ मैं तेरे
मुझे दे यह वरदान हो रामा
चाकर मैं तेरा