शुक्रवार, 25 मार्च 2011

रामनाम



सारी राहें बंद हो गयी
क्या रामा यह ठानी है
गजब न करना रामा ऐसा
यह मछली बिन पानी है

तेरे नामसे आँसु छलके
क्या यह मेरा अपराध है
तुझे देखके मगन हो जाऊँ
क्या यह मेरा पागलपन है

राम तेरे आनेसे पहले
रामनाम शिव लेता है
तेरे बिना शिवलीला कर लूँ
कैसे तू आज्ञा करता है

तेरे लिये शिवशंकर रामा
मारुती बनकर आया है
रामा क्या तू नहीं जानता
राम और शंकर एकही है

तेरा ध्यान मैं त्याग दूँ कैसे
तूही सबमें समाया है
पूर्णका अंश नहीं हो सकता
पूर्णशंभू तू रामा है

सगुणमें कैसे हो नहीं सकता
निराकार जो व्यापक है
सेव्य नहीं अलग सेवकसे
सेवा त्रिपुटी माया है

तेरे नामका ऊँचा है दर्जा
तेरी कहानी अनंत है
तेरे गुणोंका गायन करने
शिव खुद यहाँ पधारा है



।। पांडुरंगार्पण ।।



शुक्रवार, 11 मार्च 2011

देह




बेटा, इस देह को
चर्म
चक्षुसे देख
जो इसे देखकर कामना जगे
नाही इसे चीर फाड़ कर देख
जो इसमें रक्त मांस एवं हड्डियां दिखे

ऐसा कर, तू अपनी आँखें मूंद ले,
बेटा, तेरे अतिपवित्र शरीर
में
कुण्डलिनी जगदम्बा है
जो उर्ध्व गमन करनेकेलिये
हमेशा आतुर रहती है

जब तू अपनी पवित्रता समझेगा
तो वह अनायासही शिवकी तरफ बढ़ेगी
जो ब्रह्मरंध्रमें आके शिवरूप होगी
यह पावन ज्ञान झूठ नहीं
अपने मन को मलिन मत कर
बेटा, तू इस सुखका पात्र है

बेटा, ऐसा नहीं की हमें चमत्कार करना है,
नाही हमें सिद्धियोंके जंजालमें उलझाना है
अगर तू नाम स्मरण ही कर ले
तो बैठे बिठाए सब कुछ पा लेगा
भक्ति की धारा में योग ज्ञान और कर्म
तीनों सम्मिलित होते है

अगर तू कहेगा की तू भोग ही चाहता है
तब भी एक दिन अवश्य आयेगा
जब तू खुद की इच्छा से
दिव्यता की ओर प्रस्थान करेगा
दिव्यताकी चाह नैसर्गिक सहज भाव है
मैं तेरी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
बिना कठिनाई तू मुझे पाही लेगा



शुक्रवार, 4 मार्च 2011

प्यार



कोई चीज जब प्यारी लगती है तो सबसे पहले उसपर कब्जा करनेकी इच्छा होती है । जब स्वार्थ थोड़ा हट जाता है तो उसी चीजको कोमलतासे छू ले ऐसा दिल कहता है । स्वार्थ और भी कम हो जाता है प्यार सिर्फ नजरोंसे छलकता है । स्वार्थके और भी कम हो जानेपर प्यार दिलमें रह जाता है और उस चीज के बारे में शुभ कामना करते रहता है ।

जब ऐसा प्यार सर पर चढ़ता है तब वह पूरी दुनिया के प्रति स्नेह भाव बन जाता है । इसका असर प्यार करने वालेपर यूँ छा जाता है की दिल और दिमागसे दिव्य आनंदकी लहरें निकलती है और पूरा बदन सुख संवेदनाओंसे उमड़ पड़ता है ।

यह प्यार मैंने खुले आसमान के नीचे घने जंगलमें, ऊँचे पहाड़ पर पाया । और अब मुझे ऐसी आज्ञा मिली है की मैं सिर्फ मंदिरों, मस्जिदों या प्रार्थानाघरोंमेंही नहीं बल्कि हर जगह इसी दिव्य प्यार का प्रचार एवं प्रसार करूँ ।



असतो मा सत्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतम्गमय

शान्ति: शान्ति: शान्ति:

न मे कर्मफले स्पृहा



जे ऐसेनि सुखे मातले । आपणपांचि आपण गुंतले ।
ते मी जाणे निखळ वोतले । सामरस्याचे
। ।
ते आनंदाचे अनुकार । सुखाचे अंकुर ।
की महाबोधे विहार । केले जैसे । ।

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