रविवार, 18 नवंबर 2012

सुख


हमने दिवाली मनाई। क्या किया? घर साफ़ किया और उसमें दिपक जलाए। अब इस साफ़ सुथरे कमरेमें हम स्वस्थ चित्त होकर बैठें। कोई खेद न हो। कोई व्यथा न हो। शांत और आनंदित मनसे बैठें। कोई चाहत न हो। कुछ कमाने की होड़ न हो। कुछ गँवाने का डर न हो।  कोई क्रोध न हो। कोई वासना न हो। ऐसा हमने अपने मन का कमरा साफ़ किया। जो है उसमें हम खुश है, शांत है। अब इसमें दिपक कैसे जलाएं? राम नाम का दिपक जलाओ। अल्लाह का नाम लो। गॉड की स्तुति करो। नाम संकीर्तन से आनंद आता है। दिल बाग़ बाग़ हो जाता है।    

अब ऐसी स्थितिमें अलगसे कुछ नैतिकताका पाठ पढानेकी जरुरत है क्या? नहीं। ऐसा सहज आनंद हमें मिलता है तो कोई चोरी डकैती नहीं करेगा। भ्रष्टाचार नहीं करेगा। धन हमें आनंद नहीं देता। वह मोह पैदा करता है। बहुत धन कमायें। उससे भी अधिक धन कमायें। अत्यधिक धन कमायें। ऐसा वह खींचता घसीटता लेके जाता है लेकिन यह धन हमें सच्चा सुख कभी नहीं देता। बहुतसे लोग कहते हैं की हमारे बच्चोंको पढानेके लिए हम पैसा खाते हैं। लेकिन बच्चा पढनेके बाद क्या करता है? और ज्यादा पैसा खाता है। न बाप सुखी होता है, न बच्चा सुखी होता है। ये लोग धन और मानकी चक्करमें एक दूसरेको नोंचते खसोटते है। झगड़े करते है। आतंकी भी हो जाते है। शब्दोंसे और हथियारोंसे एक दुजेपे वार करते है। लेकिन आखिरमें जिस बात की याने सुख की अपेक्षा वो करते है वोही सुख पानेमें ये लोग नाकामयाब हो जाते है।      

 सुख अपने अन्दर, अपने मनमें है। हम सुखस्वरूप हैं। इसलिए इधर उधर तलाश करनेकी आवश्यकता नहीं है। स्थिर हो जाओ। शांत हो जाओ। सुख अपने आप उजागर हो जाएगा।   
ॐ 

उठो शिद्दत से करो 
कोशिश चिराग बनने की 
कौन जाने तुम्ही से रोशन 
कल सारा जहाँ हो 

786

रविवार, 28 अक्तूबर 2012

प्रतिभा


मेरे मित्रने कहा की मैं कांडा के बारेमें लिखूँ  या मैं वाड्रा के बारेमें लिखूँ , कम से कम मैं गडकरी के बारेमें लिखूँ  ; जो इस देश की समस्या है उसके बारेमें लिखूं। मैं कुछ काल्पनिक बातें लिखता हूँ जो वर्त्तमान से मेल नहीं खाती ऐसा उसका कहना था। लेकिन मेरा कहना यह है की मैं वर्त्तमान सुन्दर जीवन के बारेमें ही लिखता हूँ। समाचार पत्रोंमें वर्त्तमान जीवन का बहुत भद्दा चेहरा दिखाया जाता है। मैं वह सुन्दरता दिखाता हूँ जो उन समाचार पत्रोंमें नहीं दिखाई जाती। सत्य के अनेक आयाम होते है। मैं जो अच्छा है वह दिखाता हूँ; जिसका अनुभव पुरी दुनियामे कभी भी, कोई  भी कर सकता है। और कल्पना के बारेमें मैं यह कहता हूँ की सुन्दरता को देखने की नजर होनी चाहिए, उस नजर के होते हुवे बूढ़े चेहरेकी झुर्रियोंमें भी सुन्दरता होती है इस वास्तवका आभास हमें जरुर होगा। ब्रह्मज्ञानी को इस सुन्दरता का आनंद मिलता है। जहाँ ऐसी प्रतिभा है वहाँ ज्ञान अनायास ही होता है। वहाँ पारलौकिक सुख भी होता है। हमारे सारेही संत पढ़े लिखे थे ऐसी बात नहीं लेकिन उन्होंने अतिशय सुन्दर रचनाएँ की जो हमें आज भी आनंद देती है। मैं नामुमकिन आदर्शोंकी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं यहाँ पीपलके तनेके पास चटाई पर लेटकर जिस सुखशान्तिका जिक्र कर रहा हूँ उस सुखशान्तिके धनी आप भी हो सकते हैं। उसके लिए कोयला काण्ड करनेकी आवश्यकता नहीं बल्कि थोडी तपस्या करनेकी आवश्यकता है जो हर इंसान को मुमकिन है। अनादी अनंत शिव परमात्मा अपने अविकारी अचल आनंद स्वरूपमें समाधिमें मगन है, उसे किसी कांडा या वाड्रा से कुछ फर्क नहीं पड़ता। आपको सुख पाना है तो शिव परब्रह्म के ज्ञान को पाओ। वरना सच्चे सुखसे वंचित रहोगे। भौतिक उपलब्धियाँ कितनी भी पाओ; रेत फिसलती रहेगी, हाथ खाली रहेंगे। जो पाना था वह कभी नहीं मिलेगा। अगर सच्चे सुख की आस है तो ब्रह्मज्ञान पाओ।प्याउमें मुफ्त मिलेगा पानी, मृगजल के जालमें मत फँसो।                  

हरि ॐ तत्सत्


ॐ 
शुभ दिपावली 
ॐ 

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

शक्तिपूजन


माँ भगवती शक्ती 
पंडालोंमें और घरोंमें विराजमान हो गयी है। 
वो सर्वव्यापिनी हमारे तन मन में भी है। 
उस दैवी शक्तीका आवाहन करें। 
आओ प्रण करें की हम 
ब्रह्मचर्यका पालन करेंगे। 
भ्रष्टाचार नहीं करेंगे। 
      नशापानी नहीं करेंगे।       
सामिष आहार नहीं लेंगे।
ये सब बातें आचरणमें लाना 
बहुत कठिन है। 
आपके अंतरसे, घरसे, बाहरसे
पुरे समाजसे इसका विरोध होगा।    
ये बातें व्यवहार्य नहीं
 ऐसा कहा जाएगा। 
ये सिर्फ कहने सुननेकी बातें है;
इनपर अमल नहीं करना चाहिए,
ऐसा आपको बताया जाएगा।
 लेकिन अगर आप इन बातोंपर डटे रहे तो 
अंतत: यही बातें 
आपको इतना बल देगी की 
आपको अपने अन्दर 
दैवी शक्तिका अनुभव होगा। 
जो मृन्मयी शक्ति आप 
सामने देख रहे हो 
वोही आपके अंतरमन में 
भ्रष्टाचार रूपी, वासना रूपी, लालच रूपी 
असुरोंका अंत करती हुई 
महसूस होगी। 
   उस चिन्मयी शक्तिका 
संयम सामग्रीसे पूजन करो।
दृढ़ निश्चयी बनो।
हो सकता है की आपकी 
कभी कभार हार हो।
उसके बावजूद भी अगली जित का 
इंतज़ार करो।
खुदको बुलंद करो 
खुदाको अपने अन्दर बसा हुवा पाओ। 
ॐ 
दशहरेकी  
हार्दिक शुभकामनाएँ 
ॐ   

शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

धूप


सब कुछ अकारण आनंदविभोर है। पहाड़ आनंदमें मगन है। पेड़, पौधे, फूल, फल सारे आनंदमय है। गहरे आनंदमें डूबे हुवे पुलियासे मैं नजर हटाता हूँ और बिजलीके खंबोंसे प्रकट हो रही आनंदकी आभा देखता हूँ। रेल खुश है। आसमानसे खुशी छलक रही है। रास्ता खुश है। हर एक चिजसे आनंद झलक रहा है। सूरजकी चमचमाती सुनहरी किरणें हर तरफ हीरे बिखेर रही हैं। इस आनंदविलासिनी खिली हुई धूपके बहाने मेरे सर्वव्यापी भगवान सांईगणेशजी अपना सच्चिदानंदस्वरूप व्यक्त कर रहे है। 

यह जगद्व्यापी दिव्य आनंद मिटाये नहीं मिटता। यह किसी भी बात का, दिन का, रात का, उम्र का,ऋतू का, रुपये-पैसोंका मोहताज नहीं होता। यह आत्मानंद हर एक चीज से प्रस्फुटित होता है। यह भौतिक सुर्यसे आलोकित नहीं होता। इसका बादलोमें भी और कोहरेमें भी प्रत्यय आता है। यह चित्प्रकाश है जो सभी वस्तुओंमें दमकता रहता है।    

यह अमिट ब्रह्मानंद हमें मिट्टीमें, रेतमें खेलते हुवे मिलता है। लेकिन चिन्तामें व्यग्र होकर हम इसे खो देते हैं। विचारोंमें उलझकर हम इससे विन्मुख होते हैं। हम जिस आनंद को खोजने का प्रयास करते है, उसीसे दूर चले जाते हैं। इन बेढंगे प्रयासोंसे विमुक्त हो जाओ। स्वस्थचित्त होकर खुशीसे जियो। आनंद पाओ।
      

जपाकुसुम संकाशम् काश्यपेयम् महद्द्युतिम् 
तमोरिम् सर्व पापघ्नम् प्रणतोस्मि दिवाकरम् 
       
न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावक:
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम

असतो मा सद्गमय 
तमसो मा ज्योतिर्गमय 
मृत्योर्मामृतम् गमय 
ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति: 

    

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मकसद


घाव भरे दुखियोंके 
मरहम बनकर काम आये 
मेरे काव्यके सृजनका 
मकसद हरदम रहे यही 

यह सुगंध बनकर महके 
दुनिया बने फुलवारी 
यह सावन बनकर बरसे 
संताप हरे सबका यही 

ज्ञानके दीपक जले 
जगमग चमके खुशियाँ 
आँखोंमें उजाला दमके 
चाहत मेरी बस है यही

अच्छाईका उत्थान हो 
बुराईका पतन हो सदा 
आओ मिलकर प्रण करें 
अच्छे बने हम ध्येय यही 

नफरतोंका ढेर है बारुदका 
इस तरह भिगो दें फिर ना जल उठे 
प्यार फैले सब तरफ हो शांतता 
अपना मकसद है यही हाँ है यही  

गुरुवार, 23 अगस्त 2012

ब्रह्मानंद और परमशान्ति


अपने कार्यालय के काम के लिए मैं मित्र के साथ बाइक पर सफ़र कर रहा था. मैंने कहा कि रास्ता परब्रह्म है, बाइक परब्रह्म है, तुम परब्रह्म हो, मैं  परब्रह्म हूँ और सफ़र परब्रह्म है: इसलिए अपने कर्म करने के बावजूद ब्रह्मानंद और परमशान्ति के अलावा और कुछ भी नहीं है.   

यूँ तो कर्म करनेसे किसीका छुटकारा नहीं होता लेकिन ज्ञान दृष्टिमें सब कुछ एक परब्रह्मही होनेसे कोई यातायात, लेनदेन, व्यवहार आदि कोईभी कार्य होता नहीं अत: ज्ञानी अकर्ता होता है. उसमें कर्म का अहंकार नहीं होता. कर्म का फल भी उसे भुगतना नहीं पड़ता क्योंकि कर्ता, कर्म, कर्मफल आदि सब कुछ ब्रह्मस्वरूप होता है और ज्ञानी कर्मबंधन से छुट जाता है और ज्ञानी को कर्म करते हुवेभी नैष्कर्म्यकी  प्राप्ति हो जाती है.

ॐ राम कृष्ण हरी



ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ।।
ॐ 

मंगलवार, 14 अगस्त 2012

राम जपो


राम राम भज प्यारे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

सुख दुख सबही छूट गये 
अब नैय्या लगी किनारे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

रामही सबमें मिले सर्वदा 
क्या पाना खोना रे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

जनम मरण से छुटकारा है 
राम है रखवाला रे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

अचल विमल है तेरी आत्मा 
निर्गुण राम जपो रे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

शांत मधुर है भाव जगाता 
राम नाम रस दिव्य रे मनवा 
राम राम भज प्यारे 

गुरुवार, 28 जून 2012

नशा


तेरे मीठे नामसे 
आती है नशा 
कर्तव्य कर्म सभी 
पीछे छुट जाय 

क्या करूँ और कुछ 
सूझे नहीं मुझे 
घोर चिंता आसपास 
फटकने ना पाय 

तेरा नाम लेकर 
खाता हूँ मैं रोटी 
जितना तू देता है 
वोही काफी हो जाय 

सर्वव्यापी रामा मुझे
इतना सुख तू देता है  
तेरा नाम लेकर मेरा 
मन भर जाय 


भगवन्नामके रसको 
पीते जाओ प्यारों 
कोई बाधा कभी ना 
आकर तुम्हे सताय 


आतंक तो सभीका 
दुश्मन है साथीयों 
खुदका और दुजेका 
सुख चैन लिये जाय 


आतंकसे करो तौबा 
नाम लो अल्लाहका 
वोही हमको उबारेगा 
और ना कोई उपाय


इब्लीसकी बातोंमें  
मत फँसो यारों 
आतंक तो जुर्म है 
दुख देता जाय


तुम सभी मेरे 
जिगरके टुकड़े हो 
बिना किसी मकसदके
जान ना चली जाय


ख्वामख्वाह मत मरो
लाडले बच्चों मेरे
रोब और पैसोंसे 
इज्जत चली जाय 


पैसोंसे सुकून जाय 
आतंकसे अमन जाय 
सिर्फ अल्लाहके नामसे 
ख़ुशी मिल जाय   






गुरुवार, 21 जून 2012

परमपद


तृष्णाके त्यागसे
परमपद प्राप्त होता है 
जैसे ऊपर जानेवाली
ज्वाला निष्फल होती है 
उस तरह अपने
कर्म निष्फल समझो 
उनसे कोई अपेक्षा मत करो 
और जो कुछ मिलता है 
उसमें संतुष्ट रहो
जितना हो सके 
उतनाही काम करो 
जिंदगी आपसे बहुत
अपेक्षा नहीं करती
इसलिए जरुरतसे
ज्यादा काम मत करो


ॐ 
प्रखर प्रज्ञायै विद्महे 
महाकालायै धीमहि 
तन्नो श्रीराम:
प्रचोदयात्
ॐ 


    

शुक्रवार, 8 जून 2012

ईश्वर




 चर्चे तेरे रहमके
घर घर में गूँजते है 
तेरा नाम लेके अल्लाह 
तेरे बन्दे झूमते हैं 

जिंदगी है बहता दरिया 
अगला पल नया किनारा 
पग पग पर तेरा उजाला
अँधियारा ख़त्म हुवा है 

हम क्यूँ ना सरको झुकाएँ 
हर ओर नजर तू आता 
हर ओर तेराही नजारा 
हर ओर तुझे पाते हैं  

क्यूँ ख़त्म हो मिलन हमारा  
एक तू ही हमें मिलता है
एक तुझे छोडके खुदाया 
कुछ और ना हम पाते हैं 

तेरा नाम क्यूँ ना गाएँ 
सबकुछ तू ही हमारा 
तेरे सिवा ना कोई 
दाता हमें मिला है 

पलकें झुकी हमारी 
तुझे याद कर रहे हैं 
तू ही पास है हमारे
और दूर भी तू ही है 

 तू ही शिव है तू है अल्लाह 
सबमें रचा बसा है 
यह जो दूरियाँ है सारी
बस नामकी बनी है 

तुझे छोडके जहाँमें  
कुछ भी नहीं है रामा 
तू जिधर नहीं है ऐसी
कोई जगह नहीं है

ईश्वर तो एकही है 
हम भी जुदा नहीं हैं 
 नहीं गलतफहमी अब कुछ
हम सब तेरे हुवे हैं

*

शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

जिंदगी



हजारों ख्वाहिशें ऐसी 
कि हर ख्वाहिशपे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमां 
लेकिन फिर भी कम निकले 
*
फकीर हो जा मेरे दिल 
वक्तपर सँभल जाएगा 
न राजा बन न गुरु बन 
थोड़े में दिल भर जाएगा 

क्या लाया था क्या पायेगा 
क्या साथ लेकर जाएगा 
तू तो गलीका कुत्ता है 
जियेगा मर जाएगा 

यही ठोस कहानी है 
यहाँ सब कुछ फानी है 
अल्लाह का नाम लेता जा 
इज्जत बहुत कमायेगा

किसीसे दुश्मनी करेगा
तो बहुत पछतायेगा
सबसे दोस्ती करेगा
तो दोनों जहाँ पायेगा


 बेकार के चन्द लम्हे है 
अल्लाह का नाम लेना है 
जिंदगी का भरोसा नहीं 
सोच ले कैसे गुजारेगा 

  गाली गलौज ठीक नहीं 
अकड़ दिखाना जरुरी नहीं 
उम्र यूँ गवाँना नहीं 
अल्लाह का रहम पायेगा

  खुदकी कीमत समझेगा 
तो तेरा गुरुर जाएगा 
खुदाकी रहमत समझेगा 
दिल का करार पायेगा


अस्लमें ब्रह्मलीन
होनेके बावजूद भी
तू अपना किरदार
बखूबी निभाएगा

हम सब एक है
यही नारा गाये जा
दुजापन हमें साँई
 मात
कभीहीं देगा  
786 



ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
   ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ।।
 ॐ  
  

गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

तेरा साथ



रामा तेरे बिना अब
कोई नहीं है मेरा 

 धन मान दुनिया दौलत
कुछ भी नहीं है मेरा
 

क्या छुपाऊं तुझसे रामा
हासिल तुझे किया जब

  सब छोड़ छाड़ के मैं 
बन बैठा सिर्फ तेरा
 

तहे उम्र छोडूं तुझको
वादा किया था मैंने

  अब ऐसा क्या हुवा है
जो मैं छोडूं साथ तेरा
.
मुझे रास आये दुनिया
  तेरे साथ मैं भी आता 
कहनेकी नहीं बातें 
पीछा छोडूं तेरा
.
तेराही साया बनकर
रहूँ साथ मैं हमेशा 
प्रयोजन नहीं रामा
अब और कुछभी मेरा
.
तेरे बिना करूँ क्या
 अवधकी व्यर्थ बातें 
 कांटेभी है सुहाने  
बनवास नहीं यह मेरा

ॐश्रीरामॐ

रविवार, 15 अप्रैल 2012

सांई कहे

 
रामा तेरे चरणयुगुल मेरे जीनेका सहारा है
इन चरणोंमें गुजर बसर हो और ना कोई आसरा है
 
तेरे लिये सब कष्ट सहूँ मैं यही कर्म अब मेरा है
तेरे लिये सब कुछ मैं गवाँ दूँ यही धर्म अब मेरा है
 
मैं इस लायक नहीं हूँ रामा तेरे काम कुछ मैं आऊँ
तू अपनाये रामा मुझको मैं तुझपे वारि जाऊँ
 
मैं तुझको सुख दे ना सकूँ तो माफ़ मुझे कर दे रामा
तू तो है अतुल बलशाली विकल गात्र मेरे रामा 
 
मरभी जाऊँ तो मैं लेकर पुनरजनम तुझको पाऊँ
तेरा काम चलताही रहे मैं मरकर तेरे काम आऊँ  

ॐ 
 

सोमवार, 9 अप्रैल 2012

ॐ नम: शिवाय


ॐ नम: शिवाय 
ॐ नमो जी शिवा अपरिमिता 
आदी अनादी मायातीता 
पूर्ण ब्रह्मानंदा शाश्वता
हेरंबताता जगद्गुरो
   

रविवार, 8 अप्रैल 2012

रामकृपा


हम कुछ करते नहीं है रामा 
तूही सब कुछ करता है 

रामा तूही सबका जीवन 
खुशियोंसे भर देता है 

हम पागलसे सुधबुध खोये 
तुझसे मिलने आते है 

आनंदविभोर व्याकुल होकर 
तेरा दर्शन लेते है 

तेरा प्यार है जीवन सबका 
तू करता सबका उद्धार 

तेरे बिना हम कुछ नहीं रामा 
तू है हम सबका आधार 

तूही बुलाता तूही चलाता
तूही खिलाता पालन करता 

तेरी कृपासे सब कुछ पाकर 
कृतार्थ सारा जीवन होता 

तेरा नाम हम सबका प्यारा 
तू रोशन करता अंधियारा 
प्यारे रामा प्यारे रामा 
सब कुछ तेरा सब कुछ तेरा
ॐ  
जय जय राम कृष्ण हरि

गुरुवार, 5 अप्रैल 2012

सजा


ऐसी बहुत माँएँ होती है जो अपने बच्चोंसे कलंकित काम करवाती है. उन बातोंमें आर्थिक भ्रष्टाचारसे लैंगिक अत्याचार तक कई बुरे काम शामिल होते हैं जो आदमीको लौकिक रूपमें प्रतिष्ठा, पैसा और पुरुषार्थ आदि तथाकथित अच्छी बातें दिलाती है. लेकिन ये सब गन्दी बातें सामाजिक गुनहगारीके रूपमें उभरती है जो वर्त्तमान वास्तव अब भी है और सदियोंसे चलती आ रही है. इन बातोंसे व्यक्तिगत और सामाजिक तौर पर बहुत बुरा असर होता है. 

ऐसी परिस्थितिमें ज्यादा नहीं बल्कि केवल एक ही बातपर गौर करना काफी होता है की जो बातें तुम दूसरों पर आजमाते हो क्या वही बात तुम अपने खुद के लिए या अपनी अजीज बच्चों पर आजमाना पसंद करोगे. जो सुख या दुख तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरोंके लिए भी चाहो. आपकी मंगल कामना औरोंमें सुधार भी ला सकती है और औरोंको भी सुख प्रदान कर सकती है.      

भगवत्कृपाके बिना ब्रह्मचर्य साधना करना कठिन ही नहीं बल्कि नामुमकिन होता है इसलिए अत्यंत कठोर परिश्रमकी जरुरत होती है.कुकर्म करनेवाले अधम पातकी लोगोंको अपने गुनाहोंकी सजा भुगतनी पड़ती है. जो परमेश्वरको शरण आते नहीं वो क्षमा नहीं पाते. लेकिन जो पुरुष दुसरोंको क्षमा करते नहीं वो खुदभी अपने आपको क्षमा नहीं कर पाते.इसलिए कमसे कम खुदको क्षमा करके दुसरोंको भी क्षमा कर दो और भगवानकी शरण ले लो. वो हमें सही राह दिखाता है.

रविवार, 4 मार्च 2012

सरगम




प्यार
की जगह प्यार रखो
टुकसा जबाब मत माँगो
परिन्दोंके
पर मत काटो
उनकोभी
आसमान देखने दो

बातें
तो बहुत कर ली है आपने
चाहतोंको भी बोलने दो
क्या
मिलेगा बेजान लफ्जोंसे
हमें
अपनी जुबानी कहने दो

अब
नहीं ढाढस बचा है कुछ भी
टूट
चुकी है दीवारें दिल की
बहता
है प्यार बहने दो
प्यारकी
सरगम गाने दो

नफ़रत
की तो बातही ना थी
यह आलमभी रंगीन ना था
बल्कि
यह रूहोंका मीलनही था
जज्बातोंको
उजागर होने दो

हम
उनको माफ़ नहीं करते
ना उनसे माफ़ी चाहते है
लेन
देन ही होता नहीं है कुछ
तो
हिसाब करना क्या बाकी है

राम और रहमान एक हुवे है
दुवा करो सब मिलके
खुशियोंके लड्डू बाँटेंगे
साथ सभी हम मिलके

श्री
साईचरणार्पणमस्तु

बुधवार, 15 फ़रवरी 2012

ख़ुशनसीबी





सब कुछ जिसे मिला है
कुछ और क्या वह मांगे
मेरा ख़ुशनसीब मुझको
यहाँ
खिंचकर है लाया


ऐसा ना कुछ किया था
क्यूँ लुटा रहे हो मुझपे
इस प्यारके मैं काबिल
कभी था नहीं खुदाया


अच्छा नहीं किसीका
कर पाया हूँ मैं अबतक
और करभी ना सकूँगा
मेरा कुछ
नहीं बचाया


तेरा रहम था जो मुझको
अबतक है तूने पाला
तेरा रहम मेरे साँई 
है नमक तेरा खाया


तुझे छोड़कर कहाँ मैं
दिन आखरी बिताऊँ
तुझ बिन ना जी सकूँगा
इतना तुझे बताया


अहसान ना किया था
मैंने कभी किसीपर

फ़जलो करम है तेरा 
तुझसे है क्या छुपाया



किरदार तू हमारे
अल्लाह निभा रहा है

यह जाना राज मैंने
तूने जो है बताया



मेरे आका मुझेही
तूने अल्लाह है बनाया
हर तरफ मेरे अल्लाह

तुझे सिर्फ मैंने पाया



सच्चिदानन्दाचा येळकोट
*
हरि ॐ तत्सत्
*


शनिवार, 4 फ़रवरी 2012

भरोसा



भरभरके देता खुदाही तुझे खुद
रोता क्यूँ रहता है बन्दे हमेशा
बेफिक्र होके खुशीसे जिये जा
चिंता तुझे क्युँ होती है सदा

चिंता तुझे क्यूँ रुलाती है ऐसे
मालिकपे तुझको भरोसा नहीं क्या
सुख लेना गुनाह नहीं मेरे प्यारे
करता तू क्यूँ शक खुदपे है सदा

मालिक की मेहेरबानी है पूरी
चिंता
तुझे छोड़ देनी है सारी
तेरी फ़िक्र वोही है करता हमेशा
जिसने तेरी बाँह थामी है सदा

उसके भरोसेपे छोड़ दे खुदको
जिसने तुझे
है भेजा यहाँ
वोही सोचता है अच्छा बुरा क्या
निगाह करम जिसकी तुझपे सदा

डर डरके जीना छोड़ दे बन्दे
अल्लाह तेरे साथ है
खुद सदा
ना करना ऐसी चिंता दुबारा
तेराही है जो तेरा है सदा

चन्दनकी खुशबू कोयलकी तान
सोनेको मिली तेरा क्या गया

अच्छाईका इनाम अच्छाही मिला है
तेराही था अल्लाह तेरा है सदा


*
हरि ॐ तत्सत्
*