शनिवार, 23 नवंबर 2013

रखवाला




राम तुझे उबारेगा 
दिल क्यूँ डूब जाता है 
ना जाने किस संकट का 
डर तुझे यूँ रहता है 

किस बातकी व्यथा अभी 
प्यारे तुझे सताती है 
राम नाम तू लेता जा 
देखते जा क्या होता है 

राम निवाला देता है 
तुही खुद क्यूँ मुकरता है 
दुनियादारी की बातोंमें 
प्यारे तू क्यूँ आता है 

रामजी के हवाले अब 
सारी जिंदगी गुजारनी है 
कभी भूलना मत प्यारे 
रामभरोसे रहना है 

इतना याद रख प्यारे तू 
राम तेरा रखवाला है 
चिंता नहीं सतायेगी 
पार हुवा बस बेड़ा है 

रामजीके राज्यमें 
आनंद ही आनंद है 
चिंता व्यथा संकट सभी 
दूर भाग जाते है

 ज्ञान का उदय होता है 
अज्ञान अन्धेरा मिटता है 
सब तरफ राम है 
यही बोध होता है 

ॐ 

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

अभय



ॐ 


निर्भय हो जा मेरे मन
तेरा नुकसान होगा नहीं 
सब कुछ तेरा अपना है 
कुछ भी तू खो सकता नहीं 

राम नाम तू गाये जा 
डरनेकी जरुरत नहीं 
बेफिक्र होकर जिये जा 
चिंताकी जरुरत नहीं 

तुझे सहारा रबका है 
अनहोनी कुछ होगी नहीं 
बस आराम फरमाना है 
व्याकुल कभी होना नहीं 

मंजिल पर तू आया है 
तेरा कुछ बिगड़ेगा नहीं 
रामही काम करेगा सब 
तू बेसहारा होगा नहीं 

ॐ 


मंगलवार, 2 जुलाई 2013

दैवी सुखकी ओर


ॐ 
आओ, हम प्रण करें की हम राम, कृष्ण, शिव, महावीर, बुद्ध जैसे बनें .काम, क्रोध, लोभ, मोह, आदि विकारोंपर विजय पाना कठिन तो है पर सद्गुरु की कृपासे असंभव नहीं है .अगर हम ठान लें तो हम भ्रष्टाचार, बलात्कार जैसे गुनाह करनेसे बच सकते हैं .मैं स्त्रियोंको भी आवाहन करता हूँ की वे अपने पतियोंको और पुत्रोंको ऐसे घिनौने अपराध करने को उद्दयुक्त ना करें .स्त्रियोंको पैसोंका, गहनोंका तथा बड़प्पन दिखानेका चाव होता है और वो इसके लिए अपने घरके पुरुषोंको भड़काती हैं .बाकी जो अश्लील साहित्य होता है उनमें भी स्त्रियोंकी साझेदारी बराबर की होती है .हम अगर इन विषयोंके जालमें ना फँसे तो इस पूरी धरतीपर मनुष्य का वर्त्तमान और भविष्य उज्ज्वल हो सकता है .

तो आओ, हम दुखोंकी, शोककी और पतन की राह छोड़कर दैवी सुखकी ओर अग्रेसर हो .
ॐ 
                    

रविवार, 28 अप्रैल 2013

सगुण अवतार



भगवान सगुण साकार अवतार लेनेपर भी कहते है की मैं सिर्फ एक देहकी मर्यादा में हूँ ऐसा समझनेकी भूल मत करो. मेरा सर्वव्यापक होना अबाधित होता है. भगवान जब अपनी विभूतियाँ बताते है तब भी कहते है की यूँ तो मैं सर्वव्यापक हूँ पर तुम मुझे सबमें देख नहीं सकते इसलिये मैं ऐसी विभूतियाँ बता रहा हूँ जिनमें मेरे गुण प्रकट स्वरूपसे दिखते हैं. लेकिन मैं सर्वव्यापी निराकार निर्गुण परमात्मा हमेशा हूँ. प्रकृति मुझ निरवयवको अवयव देके सजाती संवारती है. मैं हजारों आँखोंसे देखता हूँ और बगैर आँखोंके भी देखता हूँ, हजारों कानोंसे सुनता हूँ और बगैर कानोंसे भी सुनता हूँ . सबकुछ मेरे अधिष्ठानपर होता है पर मैं अकर्ता हूँ क्यों कि सारे कर्म प्रकृतिके राज्यमें होते हैं .परब्रह्म के राज्य में तो कर्म भी ब्रह्मस्वरूप हो जाता है , कुछ भी नहीं बचता. मैं सब जगह हूँ और एक मेरे सिवाय कहीं भी कुछ भी नहीं है पर मुझे पहचानने वाला हजारों लाखोंमें एकही होता है. आम आदमी मुझे जानता नहीं है. 

संत नामदेव को सिर्फ विठ्ठलजीकी मुर्तिमें ही भगवान है ऐसा लगता था. जब वह अपने गुरु विसोबा खेचर को पहली बार मिले तब विसोबाजी  शिवलिंग के उपर अपने पैर रख कर सोये हुए थे. नामदेवजी ने कहा की पैर हटाओ तो विसोबाजी ने कहा की मुझमें इतनी ताकत नहीं है, कृपया आप ही मेरे पैर ऐसी जगह रख दो जहां शंकर भगवान ना हो. जब नामदेवजी ने गुरुजीके पैर दूसरी जगह रखे तो जिस जिस जगह पर उनके पैर रखे वहीँ पर उन्हें शिवलिंग मिला. इस तरह उन्हें गुरुजीने भगवानकी सर्वव्यापकता का परिचय दिया.


जो बात भगवान की है वही बात किसीभी ज्ञानी व्यक्तिकी होती है. देहधारी होकरभी वह सर्वव्यापक होते है. दरअसल यह तो हर किसीकी बात है. लेकिन जो समझा वह पार उतर गया, जो नहीं समझतें उनका क्या ?


जय जय राम कृष्ण हरी 

 

मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

वासना पर विजय




   मुझे इस बातका अचरज नहीं लगता की लोगोंको कामवासना पर विजय नहीं मिलता . लेकिन अच्छाई भी तो कोई बात है . बलात्कारीयोंकी, भ्रष्टाचारीयोंकि और सफेदपोश गुनहगारोंकी संख्या इतनी क्यूँ बढ़ रही है यह मेरे समझमें नहीं आता . 


   अगर आप अच्छे हो तो मेरे साथ हाथ मिलाओ . आओ, हम देखें की बुरे लोग ज्यादा है या अच्छे लोग ज्यादा हैं . आओ, हम शपथ लें की हम कामवासना, भोगलालसा, भ्रष्टाचार आदि गुनाहोंपर विजय प्राप्त करेंगे . अगर हम खुद सुधारते हैं तो यह बात पक्की है की हम एक दिन गुणोंसे और संख्यासे इतने बढ़ेंगे की सारी दुनिया तो नहीं पर बहुत सारी दुनिया अच्छाई की राह पर चलेगी . 

   हमारा धर्म, पंथ या संप्रदाय इस बात के आड़े नहीं आयेगा क्यूँ की सारेही धर्म, पंथ और संप्रदाय नैतिकता पर जोर देते हैं . इसलिए हम एक होकर, कंधेसे कंधा मिलाकर, हाथ हाथोंमें लेकर, एकजुट होकर काम कर सकते हैं . 

   आओ, हम हमारे बच्चोंके सामने ऊँचा आदर्श प्रस्थापित करें ताकि यह भारत देश ही नहीं बल्कि सारी दुनियामें खुशियाँ फैले . समझ लो की हम अगर एक होकर रास्तेपर आकर नारे ही लगाएं तो बलात्कारीयोंका दिल दहल सकता है, भ्रष्ट सत्ताधारीयोंके और सफेदपोश गुनाहगारोंके आसन डोल सकते हैं . याद रखो की हमारी एकता और हमारा सत्चरित्र ही हमारी शक्ति है .     

* वहशी दरिंदोंको फाँसी दो *    

ॐ अल्लाह ॐ गॉड ॐ राम ॐ 

बुधवार, 3 अप्रैल 2013

अरे गोविंदा



तू और मैं एकही 
है ना रे गोविंदा 

मैं ब्रह्म तू भी ब्रह्म 
है ना रे गोविंदा 

तुझसे जुदाई मैं 
ना सहूँ गोविंदा 

अब तो एकरस हम 
हो जाएँ गोविंदा 

किसलिये यह झूठा 
द्वैत रे गोविंदा 

नहीं मानता मैं 
माया रे गोविंदा 

वरना यह भक्ति भी 
ना चाहूँ गोविंदा 

मैं ही भगवान हूँ 
सही है ना गोविंदा 

तेरे बगैर और कुछ 
क्या काम का गोविंदा 

जिद यह मेरी मान ले 
मेरा तू गोविंदा 

ॐ 
हम सब एक हैं 
ॐ 


सोमवार, 25 मार्च 2013

ज्ञानोत्तर भक्ति


अहम् ब्रह्मास्मि का स्फुरण थोडे समय के लिए होता है. बादमें अहम् (मैं) त्वम (तुम) ये बातें नहीं रहती क्यों की सब कुछ एक ब्रह्म ही होता है. उसके अलावा और कुछ भी नहीं होता. इस लिए सिर्फ ब्रह्म भाव शेष रहता है.
लेकिन भक्तिका सुख पानेके लिए ज्ञानि लोग भी द्वैत का आश्रय लेते हैं. सारे चराचर में भगवान को पाते हैं.भगवान को ज्ञानि भक्त ही सबसे ज्यादा प्रिय होते हैं.

ॐ 

होलीकी शुभकामनाएं 
    
जय जय राम कृष्ण हरी 


     


सोमवार, 25 फ़रवरी 2013

परमात्मा



मैं अनंतकोटी ब्रह्माण्डनायक हूँ 
मैं अज, अव्यय, अविनाशी हूँ 
मैं केवल यह शरीरमात्र  नहीं 
मैं उससे बृहत् हूँ 
मैं परब्रह्म हूँ 
मैं भगवान हूँ 
मैं सर्वव्यापी परब्रह्मवस्तु हूँ 
मैं इस शरीरके अन्दर, शरीरपर
और शरीरके बाहरभी हूँ 
मैं परमात्मा हूँ 
जैसे कपडे में तंतुके सिवाय
कुछ भी नहीं होता 
वैसेही दुनियामें
 एक परब्रह्मके सिवाय कुछ भी नहीं 
और मटकीके अन्दर का आकाश
बाहर के आकाश का 
हमेशा जुडा हुआ अंश होता है 
वैसेही आत्मा और परमात्मा 
हमेशा एक होते हैं  
शरीर और आत्माका 
परमात्मासे अलग
कोई वजूद नहीं होता 
जैसे तोता पिंजरेके अन्दर
लटकी हुई नालिकाको 
पकड़कर सोचता है
की मैं बंधा हुआ हूँ 
वैसेही जीवात्मा गलत सोचता है 
की मैं मुक्त परमात्मा नहीं हूँ, 
मैं शरीरमें बंधा हुआ हूँ 
खुदमें परमात्माको पाओ 
और हमेशा शांत एवं संतुष्ट रहो 

ॐ 
जय जय राम कृष्ण हरि
जय जय राम  
हरि जय जय राम 
हरि जय जय राम 
राम कृष्ण हरि जय जय राम 
ॐ 
सोऽहं 
ॐ 


शनिवार, 5 जनवरी 2013

समाप्ति



प्यार की बहुत जरुरत है 
वासनाको समाप्त करो 

रिश्ता जोडो इंसानियतसे 
दरिंदगीको समाप्त करो 

अपराध कबतक पनपता रहे 
कुसंस्कारोंको समाप्त करो 

गन्दी फ़िल्में कुचल डालो 
अश्लीलता समाप्त करो 

सांस्कृतिक आक्रमण रोक दो 

आलस्यको समाप्त करो 

मैत्री करुणा चाहिए हमें 
वैरभावको समाप्त करो 

अहिंसाको अपनाओ यारों 
हिंसाको समाप्त करो 

दिलमें दर्द उठा है प्यारों 
हिंस्त्रताको समाप्त करो 

बुरे कर्मका फलभी बुरा है 

अज्ञानको समाप्त करो 

बुराईका डटकर सामना करो 
कायरताको समाप्त करो 

ॐ 
अभयं सत्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थिति:
दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम् 
अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्याग: शान्तिरपैशुनम् 
दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ह्रीरचापलम्   
 तेज: क्षमा धृति: शौचमद्रोहो नातिमानिता 
भवन्ति संपदं दैवीमभिजातस्य भारत  
ॐ 
भगवान अर्जुनसे कहते है -
भयका सर्वथा अभाव, अंत:करणकी पूर्ण निर्मलता,तत्वज्ञानकेलिये ध्यानयोगमें निरंतर दृढ़ स्थिति, दान, इन्द्रियोंका दमन उत्तम कर्मोंका आचरण, अध्यात्मिक पठन-पाठन, भगवानके नाम एवं गुणोंका कीर्तन, स्वधर्मपालनके लिये कष्ट सहना, शरीर तथा इन्द्रियोंके सहित अंत:करणकी सरलता, किसीभी प्रकारसे किसीको कष्ट न देना, यथार्थ और प्रिय भाषण, अपना अपकार करनेवालोंपर भी क्रोधका न होना, कर्मोंमें कर्तापनके अभिमानका त्याग, चित्तकी चंचलताका अभाव, किसीकी निंदा न करना, सब भुताप्राणियोंमें हेतुरहित दया, आसक्तिका न होना, तेज, क्षमा, धैर्य, शुद्धि, किसीमें भी शत्रुभावका न होना, अपनेमें पूज्यताके अभिमानका अभाव - ये सब दैवी सम्पदाको लेकर उत्पन्न हुए पुरुषके लक्षण है       
ॐ