बुधवार, 29 अक्तूबर 2008

हरिदर्शन


प्यार जहाँ वहाँ खुशियाँ नाचे
भक्तोंमें है हरी साँचे
हरी और भक्तमें फर्क नहीं है
हम वृन्दावन पहुँचे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे

हरी दिखता हैं भक्तोंजैसा
भक्तभी है हरीजैसे
हरी मुस्काये प्यार उँडेले
भक्त मुदित भक्तिसे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे

मीठा अमृत दर्शन हरिका
पाकर हम सुध खोये
बस एक हरिगुन गाये
और अब भूतभविष्य न सोचे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे

मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008

सबका मालिक एक है

एक गॉड है
एकही अल्लाह
राम कृष्ण हरी एक है
सब धर्मोंका एकही कहना
सबका मालिक एक है

एक खून है
एक चेतना
अपना इरादा
नेक है
हम और तुम तो
एक है भाई
अपना दाता
एक है

क्यूँ झगडे हम
इक दुजेसे
प्यार दिलोंमें
एक है
विधि अलग है
भाषा दूजी
फिर भी मंजिल
एक है

शान्तिको पर्याय
नहीं है
सुखका रास्ता
एक है
फहराओ
अपने झंडोंको
हवाका रुख तो
एक है

भज ले सीताराम


सब दुख तेरे मिट जायेंगे
बनेंगे बिगडे काम
के मन मेरे भज ले सीताराम

एकही सुख हैं इस दुनियामें
रामनाम भज प्यारे
रस जीनेका मिल जायेगा
आयेगा आराम
के मन मेरे भज ले सीताराम

चाहता हैं क्या , पहचानेगा
पाना हैं जो , मिल जायेगा
जिसकी खातिर दर दर भटका
सुबह दोपहर शाम
के मन मेरे भज ले सीताराम

राम हैं दाता इस दुनियाका
फिकर काहेको करता
छोडके खुदको रामभरोसे
किये जा अपना काम
के मन मेरे भज ले सीताराम

जीना तेरा उसकी मर्जी
तू काहेको सोचे
राखे तुझको राम दयालु
रट ले उसका नाम
के मन मेरे भज ले सीताराम

ठंडक तुझको देता हैं जो
कल्पतरुकी छाया हैं जो
क्यूँ ना उसका नाम तू जपता
तेरा जो विश्राम
के मन मेरे भज ले सीताराम

रविवार, 26 अक्तूबर 2008

किरपा { कृपा }




यहाँ सबके लिए जगह है रे
यहाँ कोई नहीं है अछुता
रामा सबपे तेरी किरपा

सबके लिए तेरी एक है वाणी
काहे नहीं समझता प्राणी
तेरी ओर मुंह फेरके बैठा
पाकर यह धन सत्ता
रामा सबपे तेरी किरपा

सब है तेरे प्यारे बच्चे
तुही पिता है सबका
रामा सबपे तेरी किरपा

तू गरीबमें ,तू कंगालमें
लंगडेलुलेमें तू बिराजे
मांगे रोटी , हमको परखे
हम अकड़े ; तू हंसता
रामा सबपे तेरी किरपा

सबपर तेरा ध्यान है रे
चाहे खल हो या हो संता
रामा सबपे तेरी किरपा

तुही है सकल जीवजन्तुमें
तुही गाय , भैंस , कुत्तेमें
सकल चराचरमें तू बैठा
दर्शन हमको देता
रामा सबपे तेरी किरपा

सदा हमारी उंगली थामे
छोडे न साथ हमारा
रामा सबपे तेरी किरपा

सुख दुख तो है आता जाता
धूप छाँवका है यह नाता
जीवन मृत्यु का तू विधाता
तुझमें जग है समेटा
रामा सबपे तेरी किरपा

ॐ 

सार्थक

खुदको अकेला क्यूँ समझे तू
खुदा जो खेवनहारा हैं
भूल जा इस बेरंग जहाँको
रामका नाम सहारा हैं

सब बल, बुद्धि, धनके पुजारी
स्वार्थने सबको मारा हैं
तू चाहता हैं कोरी चाहत
रामही ऐसा प्यारा हैं

सुन्दरताकी हवस सभीको
नश्वर देह हमारा हैं
जगकी प्यास नहीं बुझती हैं
रामतो अमृतधारा हैं

जगकी होडसे बाहर आजा
पलभर अपना तू हो जा
मंद मंद मुसकाये अन्दर
तेरा सिर्फ रामराजा

राम हैं अन्दर , राम हैं बाहर
जीवन मेरा संवारा रे
रामके नामपे मरमिट जाऊं
सार्थक जीवन मेरा रे