शनिवार, 2 जुलाई 2011

तसल्ली



अच्छी राहपर चलो बच्चों
इतनाही हम कहते है
जान
दे चुके है हम
जरब कैसे दे सकते है

किसी बातकी आपको
तकलीफ कभी हो
इसी बातका हमको
ख़याल हमेशा रहता है

बच्चोंको खुश देखते है
दूरसे यूँ जाते जाते
दिलको तसल्ली मिलती है
अल्लाहकी मेहेरबानी है

दिलकी बात होठोंपे
लाना मना है हमें
लेकिन बेदिल नहीं हम
आप जान सकते है

न बता सकते है न जता सकते है
पर दिलमें गाँठ बाँध लो
तुम हमारे प्यारे हो
और हम तुम्हारे अपने है 


इन्सानोंका इन्सानियतसे
नाता रिश्ता होता है
कोई वहशी क्या जाने
अपनापन क्या होता है



सर्वेपि सुखिन: सन्तु
सर्वेसन्तु निरामया:
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
कश्चित् दु: भाव भवेत्