बचपनमें हम दिवालीके त्योहारमें गोटा ( मोती ) साबुन लाते थे। उबटन लाते थे। चमेलीका तेल लाते थे। गरम पानीसे स्नान करते थे। फुलझडीयाँ लगाते थे। हम बहुत खुश रहते थे। हमें कभी यह अहसास नहीं होता था की हम गरीब हैं। हमें करोड़ों रुपियोंकी आस नहीं रहती थी। दरअसल रुपये पैसोंकी बात ही हमारे दिमाग में नहीं होती थी। कोई कमी हमें नहीं खलती थी। हम बहुत छोटी छोटी बातोंमें ढेर सारे आनंद की प्राप्ति कर लेते थे। कुम्हार के सामने खड़े होकर उसकी गतिविधियाँ घंटो तक देखते थे। मिट्टीके खिलौने पाकर खुश होते थे।
अब लोग करोड़ोंकी बातें करते हैं और नाखुश हो जाते हैं। क्या सचमुच पैसोंकी इतनी जरुरत होती है ? आज भी इंसान राशन के गेहूँ चावल खाके खुश रह सकता है। खुशियोंसे भरी जिंदगी पैसोंकी मोहताज नहीं होती।
भूमीवरी पडावे
ता-यांकडे पहावे
प्रभुनाम नित्य गावे
या झोपडीत माझ्या
ॐ
शुभ दीपावली
ता-यांकडे पहावे
प्रभुनाम नित्य गावे
या झोपडीत माझ्या
ॐ
शुभ दीपावली
ॐ
जरुरतमंदोंकी सहायता करो
जरुरतमंदोंकी सहायता करो