एक आदमी रास्तेसे जा रहा है। सब कुछ भगवान होनेकी वजहसे वह आदमी भगवान है , रास्ता भगवान है , वह आदमी जिधरसे आया वह जगह भगवान है , वह आदमी जिधर जा रहा है वह जगह भी भगवान है , वह आदमी के चलने की क्रिया भी भगवान है। भगवान सर्वव्यापी होनेकी वजह से ऐसा होता है। सब कुछ एक ही होनेकी वजहसे कहीं आना जाना नहीं होता और कुछ लेना देना नहीं होता। नित्य शान्ति और आनंद ही होता है।
तब अर्जुन भगवान से पूछता है कि हे भगवान , जब सब कुछ ऐसाही है तो तू मुझे युद्ध जैसा घोर कर्म करनेको क्यूँ कह रहा है ?
तब भगवान कहते हैं कि हे अर्जुन, जब तक तेरा शरीर जीवित है तब तक कर्म होता ही रहेगा। साँसें चलती रहेगी , आँखें देखती रहेगी , तेरे सारे अवयव अपने अपने गुणानुसार अपना अपना काम करते ही रहेंगे। इसलिए तू कर्म करनेको बाध्य है।
जब तू बृहन्नडा के भेसमें था और युध्द करना तेरे लिए आवश्यक नहीं था तब भी तूने विराट के राजकुमार को बचाने की खातिर युद्ध किया। तू अपने गुणोंके अनुसार कर्म करताही रहेगा। इसलिए यह जो युद्ध तेरे सामने आया है वह तू कर।
लेकिन कर्म तू कर रहा है ऐसा मत सोच और कर्म के फल की आस मत रख। हेतु रहित कर्म कर।