बुधवार, 11 नवंबर 2009

बाढ़



फूटता है प्यार इतना दिलकी दिवारोंसे क्यूँ
क्या है अल्लाह बाढ़का इस नाम कुछ पता नहीं

पेड़ पौधे प्यारे मेरे जानवरभी दोस्त है
रिश्ता इन्सानोंसे दिलका चाहता मैं सबको हूँ

सबकी खुशियाँ मेरी है और आँसुभी सबके मेरे
मुझमें पायें सब किनारा भीगता यूँही रहूँ

यूँही तेरी रहमतोंका किस्सा मैं बनकर फिरूँ
मुझको देखें तुझको पायें और कुछ मैं ना रहूँ

सब चिरागोंमें झलकती रोशनी यह तेरी है
एक तू है तूही है बस और जियादा कुछ नहीं

खुदाया मुझपे यूँही छाया रहे तेरा सुरूर
याद बस तेरी रहे यह जाँ रहे या ना रहे


माता पार्वती देवी पिता देवो महेश्वर: ।
बान्धवा: शिवभक्ताश्च स्वदेशो भुवनत्रयम् ।।

हे विश्वची माझे घर
ऐसी मति जयाची स्थिर
किम्बहुना चराचर
आपण झाला ।।
तत्सत्