रविवार, 4 मार्च 2012

सरगम




प्यार
की जगह प्यार रखो
टुकसा जबाब मत माँगो
परिन्दोंके
पर मत काटो
उनकोभी
आसमान देखने दो

बातें
तो बहुत कर ली है आपने
चाहतोंको भी बोलने दो
क्या
मिलेगा बेजान लफ्जोंसे
हमें
अपनी जुबानी कहने दो

अब
नहीं ढाढस बचा है कुछ भी
टूट
चुकी है दीवारें दिल की
बहता
है प्यार बहने दो
प्यारकी
सरगम गाने दो

नफ़रत
की तो बातही ना थी
यह आलमभी रंगीन ना था
बल्कि
यह रूहोंका मीलनही था
जज्बातोंको
उजागर होने दो

हम
उनको माफ़ नहीं करते
ना उनसे माफ़ी चाहते है
लेन
देन ही होता नहीं है कुछ
तो
हिसाब करना क्या बाकी है

राम और रहमान एक हुवे है
दुवा करो सब मिलके
खुशियोंके लड्डू बाँटेंगे
साथ सभी हम मिलके

श्री
साईचरणार्पणमस्तु