रविवार, 28 अक्तूबर 2012

प्रतिभा


मेरे मित्रने कहा की मैं कांडा के बारेमें लिखूँ  या मैं वाड्रा के बारेमें लिखूँ , कम से कम मैं गडकरी के बारेमें लिखूँ  ; जो इस देश की समस्या है उसके बारेमें लिखूं। मैं कुछ काल्पनिक बातें लिखता हूँ जो वर्त्तमान से मेल नहीं खाती ऐसा उसका कहना था। लेकिन मेरा कहना यह है की मैं वर्त्तमान सुन्दर जीवन के बारेमें ही लिखता हूँ। समाचार पत्रोंमें वर्त्तमान जीवन का बहुत भद्दा चेहरा दिखाया जाता है। मैं वह सुन्दरता दिखाता हूँ जो उन समाचार पत्रोंमें नहीं दिखाई जाती। सत्य के अनेक आयाम होते है। मैं जो अच्छा है वह दिखाता हूँ; जिसका अनुभव पुरी दुनियामे कभी भी, कोई  भी कर सकता है। और कल्पना के बारेमें मैं यह कहता हूँ की सुन्दरता को देखने की नजर होनी चाहिए, उस नजर के होते हुवे बूढ़े चेहरेकी झुर्रियोंमें भी सुन्दरता होती है इस वास्तवका आभास हमें जरुर होगा। ब्रह्मज्ञानी को इस सुन्दरता का आनंद मिलता है। जहाँ ऐसी प्रतिभा है वहाँ ज्ञान अनायास ही होता है। वहाँ पारलौकिक सुख भी होता है। हमारे सारेही संत पढ़े लिखे थे ऐसी बात नहीं लेकिन उन्होंने अतिशय सुन्दर रचनाएँ की जो हमें आज भी आनंद देती है। मैं नामुमकिन आदर्शोंकी बात नहीं कर रहा हूँ। मैं यहाँ पीपलके तनेके पास चटाई पर लेटकर जिस सुखशान्तिका जिक्र कर रहा हूँ उस सुखशान्तिके धनी आप भी हो सकते हैं। उसके लिए कोयला काण्ड करनेकी आवश्यकता नहीं बल्कि थोडी तपस्या करनेकी आवश्यकता है जो हर इंसान को मुमकिन है। अनादी अनंत शिव परमात्मा अपने अविकारी अचल आनंद स्वरूपमें समाधिमें मगन है, उसे किसी कांडा या वाड्रा से कुछ फर्क नहीं पड़ता। आपको सुख पाना है तो शिव परब्रह्म के ज्ञान को पाओ। वरना सच्चे सुखसे वंचित रहोगे। भौतिक उपलब्धियाँ कितनी भी पाओ; रेत फिसलती रहेगी, हाथ खाली रहेंगे। जो पाना था वह कभी नहीं मिलेगा। अगर सच्चे सुख की आस है तो ब्रह्मज्ञान पाओ।प्याउमें मुफ्त मिलेगा पानी, मृगजल के जालमें मत फँसो।                  

हरि ॐ तत्सत्


ॐ 
शुभ दिपावली 
ॐ 

गुरुवार, 18 अक्तूबर 2012

शक्तिपूजन


माँ भगवती शक्ती 
पंडालोंमें और घरोंमें विराजमान हो गयी है। 
वो सर्वव्यापिनी हमारे तन मन में भी है। 
उस दैवी शक्तीका आवाहन करें। 
आओ प्रण करें की हम 
ब्रह्मचर्यका पालन करेंगे। 
भ्रष्टाचार नहीं करेंगे। 
      नशापानी नहीं करेंगे।       
सामिष आहार नहीं लेंगे।
ये सब बातें आचरणमें लाना 
बहुत कठिन है। 
आपके अंतरसे, घरसे, बाहरसे
पुरे समाजसे इसका विरोध होगा।    
ये बातें व्यवहार्य नहीं
 ऐसा कहा जाएगा। 
ये सिर्फ कहने सुननेकी बातें है;
इनपर अमल नहीं करना चाहिए,
ऐसा आपको बताया जाएगा।
 लेकिन अगर आप इन बातोंपर डटे रहे तो 
अंतत: यही बातें 
आपको इतना बल देगी की 
आपको अपने अन्दर 
दैवी शक्तिका अनुभव होगा। 
जो मृन्मयी शक्ति आप 
सामने देख रहे हो 
वोही आपके अंतरमन में 
भ्रष्टाचार रूपी, वासना रूपी, लालच रूपी 
असुरोंका अंत करती हुई 
महसूस होगी। 
   उस चिन्मयी शक्तिका 
संयम सामग्रीसे पूजन करो।
दृढ़ निश्चयी बनो।
हो सकता है की आपकी 
कभी कभार हार हो।
उसके बावजूद भी अगली जित का 
इंतज़ार करो।
खुदको बुलंद करो 
खुदाको अपने अन्दर बसा हुवा पाओ। 
ॐ 
दशहरेकी  
हार्दिक शुभकामनाएँ 
ॐ