शनिवार, 13 फ़रवरी 2016

करम



गम जो उजागर कर दिया 
मैंने तुझसे बिछड़नेका 
कभी जुदाई ना थी ऐसा 
अपना बनाके रक्खा है 

दुनियाको अता पता नहीं 
मेरी महफ़िल-ए-यार का 
अल्लाह का करम मुझपे है 
रूबरू बनाके रक्खा है 

मौला तेरे इश्क़में 
दिवानगीसे दूर हुवा 
वरना दुनियादारीने
पागल बनाके रक्खा है 

तूही जाने ऐसा करम 
   क्यों है मुझपे ऐ खुदा
तूने मुझे हमेशासे 
प्यारा बनाके रक्खा है 

किसीके पास नजर नहीं 
किसीके पास नज़रिया नहीं 
इन लोगोंको कुदरतनेही 
अंधा बनाके रक्खा है 

खुदाया तेरी रहमतको
मैं बयाँ कैसे करूँ 
तूने मेरी जिन्दगीको 
गुलशन बनाके रक्खा है 

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