गम जो उजागर कर दिया
मैंने तुझसे बिछड़नेका
कभी जुदाई ना थी ऐसा
अपना बनाके रक्खा है
दुनियाको अता पता नहीं
मेरी महफ़िल-ए-यार का
अल्लाह का करम मुझपे है
रूबरू बनाके रक्खा है
मौला तेरे इश्क़में
दिवानगीसे दूर हुवा
वरना दुनियादारीने
पागल बनाके रक्खा है
तूही जाने ऐसा करम
क्यों है मुझपे ऐ खुदा
तूने मुझे हमेशासे
प्यारा बनाके रक्खा है
किसीके पास नजर नहीं
किसीके पास नज़रिया नहीं
इन लोगोंको कुदरतनेही
अंधा बनाके रक्खा है
खुदाया तेरी रहमतको
मैं बयाँ कैसे करूँ
तूने मेरी जिन्दगीको
गुलशन बनाके रक्खा है
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