सोमवार, 1 फ़रवरी 2010

भिखारी


अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो
विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेंद्रियाणाम्
सदा मे समत्वं मुक्तिर्न बन्ध:
चिदानंदरूप: शिवोऽहम् शिवोऽहम्






मंदिरमें आके हमभी
इक गुनाह करके बैठे
देनेको हम आये
वो भिखारी समझके बैठे

क्या करें उस मिल्कियतका
हमको दाता क्या है कम
दौलतमें बहते आये हम
वो चोर समझके बैठे

अच्छा हो गया ऐ मालिक
आँखोंसे परदे हटे
देने आये हम ग्यान
वो अनाड़ी समझके बैठे

तूही हमको है घुमाता
इसलिए करे वो जुर्रत
रबको ना समझते
हमको जाने क्या समझके बैठे

दुशवार है बिन प्यारके
यह जिंदगी बेकार है
आओ अब गले लगालो
सांई दिलको थामके बैठे


ईद--मिलाद एवं होलीकी शुभकामनाएं