रविवार, 15 अगस्त 2010

माँ


अल्फाज रुकते नहीं हैं
सचको ज़ाहिर करते हैं
प्यार नहीं पैसा नहीं
बस थोडासा अनाज है

बच्चे कहते मत रो माँ
हम खुश हैं तू देख रही ना
आज़ादी हम मना रहे हैं
तू क्यूँ नाराज दिखती हैं माँ

पता नहीं ये बच्चे इतने
खुश कैसे रहते हैं
शादीकी उम्र बीत गई
साथीकी तलाश करते हैं

जिंदगीके मायने बदल गए
ज़िंदा रहनाही जिंदगी हैं
बच्चे हँसते रहते हैं
माँ बेकारकी रोती हैं

मुश्किलोंके हौसले बुलंद हैं
पर जिंदगी यूँही चलती है 
हमारा जोश जवाँ है
अब तो एक बार हँस दे माँ