शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

मकसद


घाव भरे दुखियोंके 
मरहम बनकर काम आये 
मेरे काव्यके सृजनका 
मकसद हरदम रहे यही 

यह सुगंध बनकर महके 
दुनिया बने फुलवारी 
यह सावन बनकर बरसे 
संताप हरे सबका यही 

ज्ञानके दीपक जले 
जगमग चमके खुशियाँ 
आँखोंमें उजाला दमके 
चाहत मेरी बस है यही

अच्छाईका उत्थान हो 
बुराईका पतन हो सदा 
आओ मिलकर प्रण करें 
अच्छे बने हम ध्येय यही 

नफरतोंका ढेर है बारुदका 
इस तरह भिगो दें फिर ना जल उठे 
प्यार फैले सब तरफ हो शांतता 
अपना मकसद है यही हाँ है यही