गुरुवार, 23 अगस्त 2012

ब्रह्मानंद और परमशान्ति


अपने कार्यालय के काम के लिए मैं मित्र के साथ बाइक पर सफ़र कर रहा था. मैंने कहा कि रास्ता परब्रह्म है, बाइक परब्रह्म है, तुम परब्रह्म हो, मैं  परब्रह्म हूँ और सफ़र परब्रह्म है: इसलिए अपने कर्म करने के बावजूद ब्रह्मानंद और परमशान्ति के अलावा और कुछ भी नहीं है.   

यूँ तो कर्म करनेसे किसीका छुटकारा नहीं होता लेकिन ज्ञान दृष्टिमें सब कुछ एक परब्रह्मही होनेसे कोई यातायात, लेनदेन, व्यवहार आदि कोईभी कार्य होता नहीं अत: ज्ञानी अकर्ता होता है. उसमें कर्म का अहंकार नहीं होता. कर्म का फल भी उसे भुगतना नहीं पड़ता क्योंकि कर्ता, कर्म, कर्मफल आदि सब कुछ ब्रह्मस्वरूप होता है और ज्ञानी कर्मबंधन से छुट जाता है और ज्ञानी को कर्म करते हुवेभी नैष्कर्म्यकी  प्राप्ति हो जाती है.

ॐ राम कृष्ण हरी



ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम् ।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ।।
ॐ