सोमवार, 25 मार्च 2013

ज्ञानोत्तर भक्ति


अहम् ब्रह्मास्मि का स्फुरण थोडे समय के लिए होता है. बादमें अहम् (मैं) त्वम (तुम) ये बातें नहीं रहती क्यों की सब कुछ एक ब्रह्म ही होता है. उसके अलावा और कुछ भी नहीं होता. इस लिए सिर्फ ब्रह्म भाव शेष रहता है.
लेकिन भक्तिका सुख पानेके लिए ज्ञानि लोग भी द्वैत का आश्रय लेते हैं. सारे चराचर में भगवान को पाते हैं.भगवान को ज्ञानि भक्त ही सबसे ज्यादा प्रिय होते हैं.

ॐ 

होलीकी शुभकामनाएं 
    
जय जय राम कृष्ण हरी