रविवार, 13 सितंबर 2009

दुवा

दुवा कर रहा हूँ मैं अब इतने पास जाएँ हम
के कयामतभी जुदा ना कर सके हमको कभी

अबभी दिलमें दाग है जो जलते हैं कभी कभी
दिलमें पड़ती है दरारें याद आते है वो दिन

काम क्या उन मजहबोंका जो जहर भर दे दिलोंमें
आदमीसे तोड़ता है रिश्ता जो इन्सानियतका

बोझ भारी है दिलोंपे कोई चकनाचूर कर दो
है वफा की प्यास उभरी थोडा दिलमें प्यार भर दो

थोडी खुलके साँस लेनेको तड़पता है यह दिल
बस भी कर दो कारोबार यह नफरतोंको बेचनेका

और कुछ ना जानता हूँ ना मैं पढ़ता कुछ अभी
प्यारही है नाम अल्लाहका मुझको खौफ है