बुधवार, 19 मई 2010

दोस्ती



जानूं ना क्या तुमसे रिश्ता जो जिगरको खींचता
क्या कहूँ खुशीभी यह बर्दाश्त अब होती नहीं

खुश तुम्हें देखूँ हमेशा रबसे मेरी इल्तिजा
अपनेमे कोई दरार पैदाही हो सकती नहीं

जंग लड़ते लोग हैं अक्सर है देखी दुश्मनी
क्या अजीब यह बात है यूँ दोस्ती देखी नहीं