बुधवार, 5 मई 2010

विजयगाथा



अक्सर अज्ञान समझता है
कि वह हावी हो चुका है
मौत सदियोंसे मारती आयी है
लेकिन जिंदगी मरती नहीं
पत्थरोंमेंभी कपोले निकलते हैं
पौधे पनपकर दरख़्त बनते हैं
क्योंकि जिंदगी हरहमेश सच है
होना कभीभी नहीं में तबदील नहीं होता
शुन्यता झूठ है
मौत सिर्फ गलतफहमी है
मौतके सौदागरों
तुम जिंदगीसेही हारे हुए हो
हम तुमसे नहीं डरते
यह हमारा जीनेका नजरिया है
यह ज्ञानकी विजयगाथा है