रविवार, 19 दिसंबर 2010

इन्साफ



प्यारमें मश्गुल तेरे
मैं आया हूँ दहलीजपे
तू नहीं ठुकराएगा
दिलमें मेरे ऐतबार है

जिस्म मेरी खोखली है
नमाज करूँ ना करूँ
ऊँचे उन जजबातोंका
यह तो महज इजहार है

पाँचकी क्या बात है
हर वक्त तेरा साथ है
तेरे सिवाय कुछ और अब
आता नहीं जहनमें है

खुदाया मन्शा तेरी है
मैं दिलोंको जोड़ दूँ
मुझको इस काबिल समझता
यह तेरा इन्साफ है

तेरी खिदमत करूँ अल्लाह
और कुछ मैं ना करूँ
बंदगीही तेरी अब
इस जिन्दगीका फर्ज है
.
सुनके तानें लोगोंकी जब
चाहा कागज़ फाड़ दूँ
खुदानेही रोका उसपे
नाम जो खुदाका है

क्या करूँ मैं अब खुदाया

सह नहीं सकता हूँ मैं

क्या दिया यह काम मुझको

क्या रहम तेरा यह है

मेरी चाहत कुछ नहीं है

तू चलाता मैं चलूँ

तेरी है आवाज अल्लाह

क्या मेरी जुर्रत यह है

मैं बना मायूस जब तो

खुदानेही कहा मुझको

मैं हूँ लोगोंके लिये

ओर लोगभी ये मेरे है


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हे विश्वची माझे घर । ऐसी मति जयाची स्थिर ।
किंबहुना चराचर । आपण झाला ।।