सारी राहें बंद हो गयी
क्या रामा यह ठानी है
गजब न करना रामा ऐसा
यह मछली बिन पानी है
तेरे नामसे आँसु छलके
क्या यह मेरा अपराध है
तुझे देखके मगन हो जाऊँ
क्या यह मेरा पागलपन है
राम तेरे आनेसे पहले
रामनाम शिव लेता है
तेरे बिना शिवलीला कर लूँ
कैसे तू आज्ञा करता है
तेरे लिये शिवशंकर रामा
मारुती बनकर आया है
रामा क्या तू नहीं जानता
राम और शंकर एकही है
तेरा ध्यान मैं त्याग दूँ कैसे
तूही सबमें समाया है
पूर्णका अंश नहीं हो सकता
पूर्णशंभू तू रामा है
सगुणमें कैसे हो नहीं सकता
निराकार जो व्यापक है
सेव्य नहीं अलग सेवकसे
सेवा त्रिपुटी माया है
तेरे नामका ऊँचा है दर्जा
तेरी कहानी अनंत है
तेरे गुणोंका गायन करने
शिव खुद यहाँ पधारा है
ॐ
।। पांडुरंगार्पण ।।