शुक्रवार, 11 मार्च 2011

देह




बेटा, इस देह को
चर्म
चक्षुसे देख
जो इसे देखकर कामना जगे
नाही इसे चीर फाड़ कर देख
जो इसमें रक्त मांस एवं हड्डियां दिखे

ऐसा कर, तू अपनी आँखें मूंद ले,
बेटा, तेरे अतिपवित्र शरीर
में
कुण्डलिनी जगदम्बा है
जो उर्ध्व गमन करनेकेलिये
हमेशा आतुर रहती है

जब तू अपनी पवित्रता समझेगा
तो वह अनायासही शिवकी तरफ बढ़ेगी
जो ब्रह्मरंध्रमें आके शिवरूप होगी
यह पावन ज्ञान झूठ नहीं
अपने मन को मलिन मत कर
बेटा, तू इस सुखका पात्र है

बेटा, ऐसा नहीं की हमें चमत्कार करना है,
नाही हमें सिद्धियोंके जंजालमें उलझाना है
अगर तू नाम स्मरण ही कर ले
तो बैठे बिठाए सब कुछ पा लेगा
भक्ति की धारा में योग ज्ञान और कर्म
तीनों सम्मिलित होते है

अगर तू कहेगा की तू भोग ही चाहता है
तब भी एक दिन अवश्य आयेगा
जब तू खुद की इच्छा से
दिव्यता की ओर प्रस्थान करेगा
दिव्यताकी चाह नैसर्गिक सहज भाव है
मैं तेरी राह में आँखें बिछाए बैठा हूँ
बिना कठिनाई तू मुझे पाही लेगा