शुक्रवार, 4 मार्च 2011

प्यार



कोई चीज जब प्यारी लगती है तो सबसे पहले उसपर कब्जा करनेकी इच्छा होती है । जब स्वार्थ थोड़ा हट जाता है तो उसी चीजको कोमलतासे छू ले ऐसा दिल कहता है । स्वार्थ और भी कम हो जाता है प्यार सिर्फ नजरोंसे छलकता है । स्वार्थके और भी कम हो जानेपर प्यार दिलमें रह जाता है और उस चीज के बारे में शुभ कामना करते रहता है ।

जब ऐसा प्यार सर पर चढ़ता है तब वह पूरी दुनिया के प्रति स्नेह भाव बन जाता है । इसका असर प्यार करने वालेपर यूँ छा जाता है की दिल और दिमागसे दिव्य आनंदकी लहरें निकलती है और पूरा बदन सुख संवेदनाओंसे उमड़ पड़ता है ।

यह प्यार मैंने खुले आसमान के नीचे घने जंगलमें, ऊँचे पहाड़ पर पाया । और अब मुझे ऐसी आज्ञा मिली है की मैं सिर्फ मंदिरों, मस्जिदों या प्रार्थानाघरोंमेंही नहीं बल्कि हर जगह इसी दिव्य प्यार का प्रचार एवं प्रसार करूँ ।



असतो मा सत्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय
मृत्योर्मामृतम्गमय

शान्ति: शान्ति: शान्ति:

न मे कर्मफले स्पृहा



जे ऐसेनि सुखे मातले । आपणपांचि आपण गुंतले ।
ते मी जाणे निखळ वोतले । सामरस्याचे
। ।
ते आनंदाचे अनुकार । सुखाचे अंकुर ।
की महाबोधे विहार । केले जैसे । ।

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