बुधवार, 2 फ़रवरी 2011

दोस्ती



पता नहीं मैं अनजानेमें

क्या दर्द तुझे देता गया

यार मुझेभी दुखही सही
.
तूने बदलेमें कुछ तो दिया


जुर्म हो गया चाहना तुझको

दोस्ती यारी पाप हुई

खुदसे भी मैं बचके चलूँगा

गलती ना हो जाए कहीं


लेकिन ऐसे जीना मुश्किल

कब तक मैं यूँ छुपता रहूँ

तेरे लिए खींचता दिल है

दिलको क्या समझाता रहूँ


तुझबिन मैं तो जी नहीं सकता

कैसे तुझे समझाऊँ यार

इतनाभी तू कठोर ना बन

हँसी खुशीसे बात तो कर


पागल मैं होनेको आया

कैसा गुस्सा है तेरा

देख सुधर जा वर्ना मैं तो

मुँह भी नहीं देखूंगा तेरा