मंगलवार, 26 अप्रैल 2011

तड़प






नाथ मेरे तू चाहता मुझको
पंड्ये काझी चाहते नहीं
क्या करूँ तुझसे मीलनका मुझको
उपाय कोई बताता नहीं

ना जाने कितने दिन गुजरे
जैसे सदियाँ बीत गयी
तू मुझको मैं तेरे मीलनको
तरसते हैं कुछ करते नहीं

तू तो कुछ भी कर सकता है
तड़प मेरी क्या जाने ना
मेरी खातिर कुछ तो कर ले
पहरा तू क्यूँ हटाता नहीं

मेरी ताकत धीरे धीरे
कम अब होती जा रही है
बादमें शायद पास मैं तेरे
ना सकूँ तू जानता नहीं

वो क्या समझे निरे अनाडी
क्या पाता मैं तुझसे मिलके
और तूभी क्यूँ खुश होता है
वो पगले कुछ समझते नहीं

मिले समाधि तुझे मैं पाऊँ
त्यागके सब तेरा हो जाऊँ
यही आरजू यही तमन्ना
और मैं कुछ अब चाहता नहीं

।। राम कृष्ण मुखे बोलातुका जातो वैकुंठाला ।।