बुधवार, 29 जून 2011

भक्तिसुख



सुखोंसे
ऐतराज नहीं मुझे
कुछ दिनरातके साथ
कुछ उम्र और जमानेके साथ
ढल जाते है और वक्तको
खाली कर देते है जिंदगीके साथ
सूना और बेकार कर देते हैं सबकुछ

जब बहार चली जाती है
और उफन रहा तूफ़ान
ठंडा हो जाता है तब
पता चलता है कि जिंदगी
यूँही गुजर गयी कुछ पाए बगैर
सब कुछ गवाँ बैठे है हम

मन चिल्लाता है बार बार
यह तो नहीं चाहता था मैं
जाने किस बातके लिए
तरस रहा था मैं
जाने वह क्या था
जिसके लिए मैं व्याकुल था
लेकिन यह सब कुछ तो मैं
नहीं चाहता था

तब वह परम ऐश्वर्य युक्त भगवान
कहता है कि तू मुझे चाहता है
मैं ही हूँ जिसमें तुझे लीन होना है
मैं वह दिव्य भाव हूँ
जिसमें तुझे खो जाना है
मैं वह परम सुख हूँ
सारे सुखोंका चरमोत्कर्ष हूँ
जिसे तू प्राप्त करना चाहता है

मैं हमेशा सुलभ्य हूँ नजदीक हूँ
और कोईभी मुझे आसानीसे
प्राप्त कर सकता है
केवल मेरे सन्मुख हो जाओ
फिर सुख ही सुख है