रविवार, 11 सितंबर 2011

काकभुशुण्डी



अबतक तुझको यकीन ना आया
मत ले मेरा इम्तिहान तू
चाहे जितना कठोर बनना
तनके बाहर प्राण मेरा तू

मेरा भरोसा टूटेगा ना
कभी ना कभी अपनायेगा तू
और गति ना मति है मुझको
जन्मांतरसे मेरा है तू

छोडभी दे अब झगड़ा रामा
जीवनका उद्देश्य मेरा तू
मैं हूँ काकभुशुण्डी कागा
खीर तेरी जूठन दे मुझे तू

माँ कौशल्या तुझे खिलाती
थालीसे नीचे गिरा दे कुछ तू
कबतक मैं यूँ ताकमें बैठूँ
मुझे मत सता दयालु है तू

अब मैं पागल हो गया रामा
बस इतना मत मुझे सता तू
तूने यह कैसी लीला रचायी
बालक प्यारे भगवन है तू

तुझसे दूर मैं रह नहीं सकता
भक्त हूँ मैं पहचान ले अब तू
कागा बनकर मिलने मैं आया
खाना दे मेरी भूख मिटा तू

और नहीं कुछभी चाहता मैं
सगुण रूपमें मिला मुझे तू
मोक्षसे ऊँचा भाग्य मेरा तू
मुझेभी दे जो खाता है तू

हरि तत्सत्