शनिवार, 18 सितंबर 2010

बन्दा





तुझे मेरे आँसुओंकी कसम
कभी ऐसा मत कहना अल्लाह
कि तू मेरा कोई नहीं है
तुझे पराया समझनेकी गलती
मैं नहीं कर सकता
और तू भी मेरा दिल तोडनेकी
बेरहमी मत करना

शायद
कुदरत मुझसे
खिलवाड़ करती है
जो मैं बंदगीसे बाज नहीं आता
और तू मेरी दखलही नहीं लेता
जैसे तेरे
जहाँमें मेरा
वजुदही नहीं है

मैं सचसे वाकिफ हूँ
ऐ अल्लाह तूही सच्चाई है
और मैं भी सचमें शामिल हूँ
बगैर अल्लाह्के बन्दा हो नहीं सकता
और बन्दा अल्लाह्से जुदा हो नहीं सकता

आखिर कुछ तो वजह बता
कि तू मुझसे खफा क्यूँ है
जो मेरी आवाज तुझतक पहुंचती नहीं
तेरी ख़ुशी हासिल करनेके लिए
बता मैं क्या करूँ

इतना अहसान तूने किया है अल्लाह
जो तेरा नाम मेरी जुबाँपर है
तेरी याद मेरे जहनमें है
और यह तेरी हिज्र का दर्द
जूनून बनकर मुझे बुला रहा है


सरिता सागरासी वाहेमिळोनी मिळतचि राहे
नित्य व्याकुळले विरहेमिलनसुख।।