ALL PATHS MEET AND END AT TRUTH. UNITY UNDERNEATH DIVERSITY. DISCOVER YOUR DIVINE SELF.EXPLORE ENLIGHTENMENT. PEACE AND HAPPINESS FOR ALL.सबका मालिक एक सोऽहं.
शुक्रवार, 19 दिसंबर 2008
ShivaBhavani: Guru Paadukabhyam
http://www.geocities.com/chelakkara_raja/gurub.htm
//duritaache timir jaavo / vishv svadharmasurye paaho//
सोमवार, 8 दिसंबर 2008
Guru Paadukabhyam
Guru Paduka Stotram
(Prayer to the Sandals of the Teacher)
By
Adhi Shankara Bhagawat Pada
Translated by,
P.R.Ramachander
(There is one more prayer written by Adhi Shankara Bhagawat pada with five verses called “Guru Paduka Panchakam”)
Anantha samsara samudhra thara naukayithabhyam guru bhakthithabhyam,
Vairagya samrajyadha poojanabhyam, namo nama sri guru padukhabyam. 1
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which is a boat, which helps me ,cross the endless ocean of life,
Which endows me, with the sense of devotion to my Guru,
And by worship of which, I attain the dominion of renunciation
Kavithva varasini sagarabhyam, dourbhagya davambudha malikabhyam,
Dhoorikrutha namra vipathithabhyam, , namo nama sri guru padukhabyam. 2
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which is the ocean of knowledge, resembling the full moon,
Which is the water, which puts out the fire of misfortunes,
And which removes distresses of those who prostrate before it.
Natha yayo sripatitam samiyu kadachidapyasu daridra varya,
Mookascha vachaspathitham hi thabhyam ,namo nama sri guru padukhabyam.3
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which make those who prostrate before it,
Possessors of great wealth, even if they are very poor,,
And which makes even dumb people in to great orators.
Naleeka neekasa pada hrithabhyam, nana vimohadhi nivarikabyam,
Nama janabheeshtathathi pradhabhyam namo nama sri guru padukhabyam. 4
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which attracts us , to lotus like feet of our Guru,
Which cures us, of the unwanted desires,
And which helps fulfill the desires of those who salute.
Nrupali mouleebraja rathna kanthi sariddha raja jjashakanyakabhyam,
Nrupadvadhabhyam nathaloka pankhthe, namo nama sri guru padukhabyam. 5
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which shine like gems on the crown of a king,
Which shine like a maid in the crocodile infested stream,
And which make the devotees attain the status of a king.
Papandhakara arka paramparabhyam, thapathryaheendra khageswarabhyam,
Jadyadhi samsoshana vadaveebhyam namo nama sri guru padukhabyam. 6
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which is like a series of Suns, driving away the dark sins,
Which is like the king of eagles, driving away the cobra of miseries,
And which is like a terrific fire drying away the ocean of ignorance.
Shamadhi shatka pradha vaibhavabhyam,Samadhi dhana vratha deeksithabhyam,
Ramadhavadeegra sthirha bhakthidabhyam, namo nama sri guru padukhabyam.7
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru,
Which endows us, with the glorious six qualities like sham,
Which gives the students ,the ability to go in to eternal trance,
And which helps to get perennial devotion to the feet of Vishnu.
Swarchaparana makhileshtathabhyam, swaha sahayaksha durndarabhyam,
Swanthachad bhava pradha poojanabhyam, namo nama sri guru padukhabyam. 8
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru
Which bestows all desires of the serving disciples,
Who are ever involved in carrying the burden of service
And which helps the aspirants to the state of realization.
Kaamadhi sarpa vraja garudabhyam, viveka vairagya nidhi pradhabhyam,
Bhodha pradhabhyam drutha mokshathabhyam, namo nama sri guru padukhabyam. 9
Salutations and Salutations to the sandals of my Guru
Which is the Garuda ,which drives away the serpent of passion,
Which provides one, with the treasure of wisdom and renunciation,
Which blesses one ,with enlightened knowledge,
And blesses the aspirant with speedy salvation.
This stotra is very beautifully sung,music is lovable. This is precious gift for us.Feel the flow of devotion and enjoy.
सोमवार, 1 दिसंबर 2008
तरंग
तरंगके जन्म लेनेसे पानी जन्म नहीं लेता
तरंगकी मौतसे पानीकी मौत नहीं होती
समुन्दरपे तरंग बनते मिटते रहते हैं
लेकिन पानी पूरा का पूरा समुन्दर बना रहता है
साथियों , हमारे देह बनते मिटते रहते हैं
सृष्टिमें आवागमन चलता रहता हैं
पर इस सृष्टिरूप समुन्दरका
पानी कभी ख़त्म नहीं होता
ये पानी जो मूलतत्व भगवान है
वो हमसे और हम उनसे जुदा नहीं होते
चाहे हम तरंग बने या समुन्दरमे मिल जायें
हम सभी सदा भगवानहि हैं
हमारे इस सत्य स्वरूपको हम झुठला नहीं सकते
हमारे स्वरूपसे हम भाग नहीं सकते
तो क्यों न हम सबको अपना जानकर
भाईचारा बनाए रखें
रविवार, 30 नवंबर 2008
राम है बाकी
राम बुद्धिका दाता मन रे
राम बुद्धिका दाता
जब हम उसके हो जाए तो
हमको क्या कम पङता
उसकी कृपा अनमोल रतन है
हर ले सभी कृपणता
क्या आया क्या गया कहाँ
हमको क्या फर्क है पङता
हम न रहे अब राम है बाकी
राम है चेतन जड़ता
हम ही नहीं संकल्प कहाँ हो
राम है चलता फिरता
उसकी मर्जी वो अब सोचे
वोही है लिखता पढ़ता
बुधवार, 29 अक्तूबर 2008
हरिदर्शन
भक्तोंमें है हरी साँचे
हरी और भक्तमें फर्क नहीं है
हम वृन्दावन पहुँचे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे
हरी दिखता हैं भक्तोंजैसा
भक्तभी है हरीजैसे
हरी मुस्काये प्यार उँडेले
भक्त मुदित भक्तिसे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे
मीठा अमृत दर्शन हरिका
पाकर हम सुध खोये
बस एक हरिगुन गाये
और अब भूतभविष्य न सोचे
भैया हम तो हरिदर्शनके प्यासे
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2008
सबका मालिक एक है
एकही अल्लाह
राम कृष्ण हरी एक है
सब धर्मोंका एकही कहना
सबका मालिक एक है
एक खून है
एक चेतना
अपना इरादा
नेक है
हम और तुम तो
एक है भाई
अपना दाता
एक है
क्यूँ झगडे हम
इक दुजेसे
प्यार दिलोंमें
एक है
विधि अलग है
भाषा दूजी
फिर भी मंजिल
एक है
शान्तिको पर्याय
नहीं है
सुखका रास्ता
एक है
फहराओ
अपने झंडोंको
हवाका रुख तो
एक है
भज ले सीताराम
के मन मेरे भज ले सीताराम
एकही सुख हैं इस दुनियामें
रामनाम भज प्यारे
रस जीनेका मिल जायेगा
आयेगा आराम
के मन मेरे भज ले सीताराम
पाना हैं जो , मिल जायेगा
जिसकी खातिर दर दर भटका
सुबह दोपहर शाम
के मन मेरे भज ले सीताराम
राम हैं दाता इस दुनियाका
फिकर काहेको करता
किये जा अपना काम
के मन मेरे भज ले सीताराम
जीना तेरा उसकी मर्जी
तू काहेको सोचे
राखे तुझको राम दयालु
रट ले उसका नाम
के मन मेरे भज ले सीताराम
कल्पतरुकी छाया हैं जो
क्यूँ ना उसका नाम तू जपता
तेरा जो विश्राम
के मन मेरे भज ले सीताराम
रविवार, 26 अक्तूबर 2008
किरपा { कृपा }
यहाँ सबके लिए जगह है रे
यहाँ कोई नहीं है अछुता
रामा सबपे तेरी किरपा
सबके लिए तेरी एक है वाणी
काहे नहीं समझता प्राणी
तेरी ओर मुंह फेरके बैठा
पाकर यह धन सत्ता
रामा सबपे तेरी किरपा
सब है तेरे प्यारे बच्चे
तुही पिता है सबका
रामा सबपे तेरी किरपा
तू गरीबमें ,तू कंगालमें
लंगडेलुलेमें तू बिराजे
मांगे रोटी , हमको परखे
हम अकड़े ; तू हंसता
रामा सबपे तेरी किरपा
सबपर तेरा ध्यान है रे
चाहे खल हो या हो संता
रामा सबपे तेरी किरपा
तुही है सकल जीवजन्तुमें
तुही गाय , भैंस , कुत्तेमें
सकल चराचरमें तू बैठा
दर्शन हमको देता
रामा सबपे तेरी किरपा
सदा हमारी उंगली थामे
छोडे न साथ हमारा
रामा सबपे तेरी किरपा
सुख दुख तो है आता जाता
धूप छाँवका है यह नाता
जीवन मृत्यु का तू विधाता
तुझमें जग है समेटा
रामा सबपे तेरी किरपा
ॐ
सार्थक
खुदा जो खेवनहारा हैं
भूल जा इस बेरंग जहाँको
रामका नाम सहारा हैं
सब बल, बुद्धि, धनके पुजारी
स्वार्थने सबको मारा हैं
तू चाहता हैं कोरी चाहत
रामही ऐसा प्यारा हैं
सुन्दरताकी हवस सभीको
नश्वर देह हमारा हैं
जगकी प्यास नहीं बुझती हैं
रामतो अमृतधारा हैं
जगकी होडसे बाहर आजा
पलभर अपना तू हो जा
मंद मंद मुसकाये अन्दर
तेरा सिर्फ रामराजा
राम हैं अन्दर , राम हैं बाहर
जीवन मेरा संवारा रे
रामके नामपे मरमिट जाऊं
सार्थक जीवन मेरा रे