शनिवार, 25 फ़रवरी 2023

गंतव्य

हमने जीवन का गंतव्य प्राप्त किया है या नहीं यह किस प्रकार जान सकते हैं ?
मैं मेरे जीवनमें कई तरह के उल्टे सीधे अनुभवोंसे गुजरता रहता हूँ जिन्हें मैं ईश्वरेच्छा समझता हूँ, जिसमें मेरा कोई योगदान नहीं होता, न तो मैं इससे कुछ प्राप्त करता हूँ. मैं इसे सिर्फ कालयापन समझता हूँ, बस, वक्त गुजर रहा है, भौतिक अर्थसे. सत्य तो यही है कि समयका कोई वजूद नहीं, न मैं खुद कुछ करता हूँ, ना ही ऐसी कोई बात है जो मुझपर कार्य कर सकती है. यही सत्य है. फिर सगुण, साकार ईश्वर कौन है ? नियती क्या है ?  भौतिक दृष्टिसे तो इनका वजूद है. लेकिन आध्यात्मिक {अद्वैतकी} दृष्टिसे सच तो यही है की बस एक निराकार सर्वव्यापी आस्तित्व है जो शून्य के समान है. ना तो उसकी कोई इच्छा है, ना ही कोई नियति है, न पाप पुण्य है, ना ही कर्म है, ना कर्मफल है.
सुखदुखसे परे एक शांत, अविचल, अकारण आनंद है. वह मैं हूँ. सोहं.
श्रीकृष्ण जयंती
श्री ज्ञानेश्वर जयंती
हरि ॐ तत्सत्